शनिवार, 29 जून 2013

नारी अबला नहीं


नारी चिंगारी है 
सम्हल के चल तू 
वह तो झांसी की रानी है 
हर घर एक झांसी है 
कितने घर तोड़ोगे तुम 
तोड़ते तोड़ते टूट जाओगे एक दिन |

एक दुःख अफसर का



आफिस से दिन भर का थका हारा
मेस से खाना खा कर 
कमरे में लौटते ही गिर जाता था वह बिस्तर पर |
उसकी नींद से मुंदती आँखें बड़े हसरत से देखती थीं
वाशिंग मशीन से धुले कपड़ों के ढेर को
काश रात को परियां आतीं
और उसके कपड़ों को आयरन कर चली जातीं
छुट्टी तो रविवार को भी नहीं थी उसे
कोई न कोई काम ' सर ' का मिल जाता था उसे
उस अफसर का दुख भुक्त भोगी ही जान सकता था |


गुरुवार, 27 जून 2013

इतिहास भूल चले हम



क्या बांधेगा हमें कोई
इतने स्वार्थी बन चुके हम स्वावलंबन के नाम पे
सारे कानून रख चुके हम ताक पे
आज हम साधू हो चले
रक्त सम्बन्ध  भूल चले अब
हम कहानियों में पढ़ते
कर्मवती ने भेजी थी राखी थी किसी को
इतिहास क्या याद रखें  हम
हमें फुर्सत नहीं |

बुधवार, 26 जून 2013

अकेली

सुनी थी मैंने
अपनों से
अकेली की अजब कहानी
वह मालकिन के घर कपड़े धोती और बर्तन मांजती थी
मालकिन से खाना मिलता था
अपने बेटे व बेटी  का पेट भरती थी
दिन बीते
वर्ष बीते
लड़का खाड़ी देश गया
कमा कर लाया धन
मालकिन के बगल का घर खरीदा
माँ से जूठन धोने का कम छुड़वाया
बहन का घर बसाने के बाद
अपना घर बसाया
पर वह अकेली अब भी जाती रहती है
मालकिन के घर
मालकिन के बच्चों की चाची , नानी कहलाती है
जैसे उसके दिन बहुरे
मंगलकामना करती मैं आज
हर अकेली के दिन बहुरें |

पुराने घाघ

कितने दिन बिताओगे ऐसे ही
कितने दिन यूँ बचोगे बच्चे
एक दिन मेरे रेंज में आओगे देखना
बिना घूस लिए बचोगे कैसे
व्यवस्था का जाल तोड़ोगे कैसे
हम भी देखेंगे तुम्हें
बिना लल्लो चप्पो किये रहोगे कैसे |

निशानियां


कर्म करने के बाद भी
जब न मिले फल
तब मन नास्तिक होने लगता है
क्योंकि अपनी भुजाओं पर
विश्वास है मुझे
कल हम हो न हों
पर आज तो अपना है न
मन करता है जल्दी जल्दी पत्ते समेटूं अब
खेल समेटने में भी तो लगता समय
कल किसने देखा है
हम हों न हों

रह जायेगी हमारी निशानियाँ

चौकन्ना है वह

चेत रहा है पढ़ा लिखा नौकरीपेशा समझदार पिता
बेटा हो या बेटी  बस एक ही सन्तान चहिये
वो भी न हो तो गोद ले लेंगे
पर लेंगे बेटी ही
कम से कम दुःख तो महसूसेगी हमारा
जितना ख्याल रख पायेगी रखेगी वो
यह परिवर्तन धीरा ही सही पल रच रहा है
एक समझदार समाज |

पहचान ले

इतनी जल्दी क्या है
तुझे ऊत्तर पाने की
मिलेगा उत्तर तुझे एक दिन
जब देखेगा मुझे तू
तब सकते में रह जायेगा
सबको एक तराजू में न तौल तू
ओ मेरे प्रोढ़ !
मैं हूँ भावी पीढी
मुझसे ही करवट लेगा तेरा इतिहास
मैं हूँ तेरा मौसम
न मुझे तू बांध पायेगा
मैं ही हूँ सुधार
तू क्या मुझे सुधारेगा
क्या न याद तुझे
एक ही सूरज रोशन करता सारी धरती
हरता जग का अंधकार |

जाना है अभी दूर

10.01,07

छुप जाते हो मुझे पुकार कर जब तुम
चौंक जाती हूँ मैं
मुझे तुमने पुकारा या मेरे मन ने
फिर दिग्भ्रमित हो जाती हूँ मैं
न आवाज दो मुझे तुम
या तो सामने आ कर बोलो
या हो जाओ मौन
या तो चलो साथ साथ
या चलने दो मुझे अकेले
जाना है अभी मुझे दूर
बहुत दूर
वचनबद्ध हूँ मैं
मुझे मुक्त करो तुम
अब अपने इस छल से |

हिम्मत न हार

1978

हर पल कुछ छूट रहा
मुट्ठी से बालू सा कुछ फिसल रहा
क्या मिटना ही तेरी नियति है ?
ओ !
शक्तिपुंज स्नेहवत्सला हो कर भी
दीन हीन ही कहलाना तेरी उपलब्द्धि है ?
घबरा न
जलती बुझती बिजली के लट्टुओं सी तू
आश्रितों को रोशनी दिखाती जा रही तेरी काया लायेगी परिवर्तन
देखना एक दिन
हिम्मत न हारना कभी तू |

जीने दो

1978

लेने दो साँस मुझे मुक्त आकाश में
उड़ने दो मन को मुक्त गगन में
मेरे अस्तित्व पर ही टिका है वजूद तुम्हारा
जीने दो मुझे
तुम्हारे जहर को मैंने इसी धरा पर उडेला है
देखो
कहीं यह धरती विषैली न बन जाए |

शुक्रवार, 21 जून 2013

माँ का आशीष

ओ पुत्र मेरे !
दूं मैं भीगी पलकों से आशीष आज तुझे
सदा प्रगति के पथ पर चढ़ते रहना
जीवन में वांछित फल पाना |

झांसी की रानी

लक्ष्मीबाई आन है तू
हमारी शान है तू
हमारे लिए जलती मशाल है तेरा नाम
हमारे अंधियारे का पथ प्रदर्शक है तू
तेरा नाम ले
अपनी लड़ाईयां लड़ जाते हैं हम
घुटना नहीं टेकते हम समस्याओं के आगे
युद्ध कौशल जानते हैं हम
हर जंग जीतने का जज्बा रखते हैं हम |

रविवार, 16 जून 2013

अद्भुत निर्णय

06.06.00

पता नहीं कैसे
दुस्साहस किया मैंने
इस वन में अकेले चलने का
मणि खोज लाने का
मार्ग की हर लता ,झाड़ झंकाड़ हटाते हुए सोंचती हूँ
बस इसी अवरोध को तो हटाना है
पर हर बार खुद को पुरानी स्थिति में पाती हूँ
पीछे मुड़ कर देखने पर
लौटने का मार्ग तो दीखता है
पर लगता है लौटने में भी तो बाधाएं हैं
इतने समय के श्रम का भला मुझे क्या मूल्य मिलेगा
भगोड़ा सैनिक क्या मैं न कहलाऊँगी |

मैं भी सजीव हूँ

1975

मैं इतिहास नहीं
विज्ञानं हूँ
मैं सिन्धुघाटी की सभ्यता नहीं
मैं नया बना मकान हूँ
मैं चाहती हूँ मौसम के साथ बहकना
बच्चों व् रिश्तों के साथ चहकना
मुझे भी अच्छा लगता है
तिलिस्म में घूमना
इतिहास रचना
मैं छाया नहीं
सजीव हूँ जो छाया बनाती है
मैं बहता पानी हूँ
मैं निर्मला हूँ |

समझौते

26.02.2000

अंतर्मन के लम्बे शीतयुद्ध की परिणिति
गिरा देती है मनोबल
डुबो देती है स्व को
और रचना करती है एक मशीनी समाज की
समझौतों को नपुंसकता का नाम देनेवाले
रक्त बहा प्रसन्न होते हैं
गौरव पाते हैं
अभिमन्यु बन जाते हैं
रात्रि के सन्नाटे में गूंजता

पिता का रुदन हमें नहीं भूलना चाहिए |

जुगनू

1998


नियति का क्रूर अट्टहास हो तुम ? ..
पूछो न यह  प्रश्न
आज तुम स्वयं से ...
न कहना देखो ....
मेरा क्या दोष ?...
त्रास की इस बेला में
मन में उठता है एक प्रश्न ...
क्या सत्य का दीप उजाला नहीं करता ?....
जलने दो इस दीप को
अन्यथा असत्य का अंधकार लील जायेगा
अजगर सा समूचे विश्व को |....
अब कोई प्रश्नोत्तर नहीं ...
देखो जुगनू सा टिमटिमाता है मन 
जुगनू की चमक से
गरमा उठेगा घर |





दान न चाहूं

27.11.2000

दान दे कर पाप नहीं धो सकते तुम
देना है तो काम दो
कुर्सी पर मत चिपको
मन न जीते तो क्या जीते तुम
कम करो खुद तुम
और दूसरों को भी करने दो |

      

वक्त शत्रु नहीं है

27.08.96

तुम मेरे शत्रु नहीं मित्र हो
जगाया है तुमने
मेरी सुप्त चेतना को
झिंझोड़ा है तुमने मुझे
बनी हूँ आज फौलाद
भीषण झंझावत में झूलता मन
देखो सहनशील बना है
जब जब हारा है मैंने युद्ध
समेटा है अपनी सेना 
और जगाया है आत्मविश्वास निज में
खुद ही मलहम लगाया है अपने घावों पर
आगे घोड़े दौड़े  हैं सदा
कामना करो मित्र
हारे न मेरा सत्य कभी |

शनिवार, 15 जून 2013

किस्मत की माँ

14.10.86

मैं तुम्हें किस्मत की मारी नहीं बनने दूंगी
ओ मेरी बेटी सुन
मैं खुश हूँ तेरे जन्म पर
मैं तुझे किस्मत की माँ बनाऊंगी |

नारी उत्थान

 1975

एक नारी चढ़ी असमान पर
बाकी रही घर के भीतर
यही तो है नारी उत्थान
जिसका गया पुरुष ने गान |

सो जा राजदुलारी



1976

सो जा मेरी राजदुलारी
जी भर कर तू सो ले रे
क्या जाने कल कैसा होगा
फिर तू कैसे सोयेगी
मानव जीवन पत्ते सा
आज यहां कल कहाँ उड़ा
किसी ने न खोजा कभी उसका निशां
सो ले मेरी बेटी सो ले
आज तू जी भर कर सो ले |

दूध मलाई लायेगी



1976

बिल्ली मौसी आयेगी
दूध मलाई लायेगी
मेरी बिट्टी को खिलायेगी
बिट्टी दौड़ी दौड़ी आयेगी
अपना मुंह दिखलाएगी
नाचेगी गायेगी |

क्षितिज



1974

जी चाहता है
छू लूँ क्षितिज
पर छूती नहीं हूँ उसे
छूते  ही उसे खो देने का भय
सदा जागता रहता है |

शहर खुश है


1075

मुसलाधार वर्षा के बाद
देख खुला आकाश
चैन की साँस लता है मन
रास्ते में बजती साईकिल की घंटियां बताती है
सड़क जी उठी है
साफ सुथरी धुली सड़कें , नालियां , दीवारें
टहलते युगल देते हैं संदेश

शहर खुश है |

बेटियां



12.00 PM , 29. 10.11

कैसी होती हैं बेटियां
जो करती हैं अपने जन्मदाता के दुश्मनों से प्यार
शायद मानहानि कर अपनों का
मजबूत करती हैं स्वयं को
इतिहास गवाह है
कुछ लोगों में आती है ताकत
स्वजनों को कत्ल करने के बाद
शायद यही नियति है

कुछ जन्मदाताओं की |

इन्कलाब का इंतजार



03.20 AM , 17.10.11

लड़की अपने कथित घर में
जब खुश रहती है
तब उसे याद आते हैं माँ बाप के दुःख
उन्हें खुश रखना चाहती है
पर दुखी रहने पर
उन्हें अपने दुःख से दुखी नहीं करना चाहती है
वैसे घर नहीं होता लड़की का कोई
अपना घर बनाने की चिंगारी भी नहीं रहती
वह तो बस सपने देखती है
केवल एक राजकुमार का
जो उसे राजरानी बनाएगा
वह दुसरी के दुःख से दुखी भी नहीं होती
बस उन्हें बदकिस्मत ख कर मुक्त हो जाती है
आज इन्तजार है एक इन्कलाब का
जब महिलाओं के श्रम का मूल्य आंका जाएगा

वह देवी नहीं मानवी कहलायेगी |

बुधवार, 12 जून 2013

महोदय

नौकरी मन माफिक न हो तो
उसे बदलें
पत्नी मन माफिक न हो तो
उसे सहें
पर पुत्र मन माफिक न हो तो
उसे अवश्य त्यागें
और रही पुत्री
वो आपकी न सुनेगी तो
निश्चिन्त रहें
वक्त सुधार देगा उसे
और कोई रिश्ता तो है नहीं आपके पास
मस्त रहें
कल किसने देखा है |

बेटा गोद लिया है

बेटी शौक है माँ की
एक गुड़िया मिलती है सजाने की
और शान है पिता की
कन्यादान कर पूण्य कमाने का मौका मिलता है
बेटी है प्यारी माता पिता को
वो दुःख बांट लेती है
पर बेटा तो जरूरी है न
इसलिए मैंने गोद ले लिया है एक पुत्र
आखिर देखनेवाला चाहिए न कोई घर द्वार मेरे बाद |

सोमवार, 10 जून 2013

पिता

ये न पूछो आज मुझसे
पिता क्या होते हैं
पिता तो ढाल होते हैं
समाज की तलवार की 
प्रत्युत्तर होते हैं
समाज के प्रश्न के
दीवाल होते हैं
अनाधृकृत प्रवेश की
पिता की झलक मात्र
भर देती है आत्मविश्वास
बेटियों के लिए पिता क्या होते हैं
पितृविहीनों से पूछो
इसीलिये तो लोग सर्वप्रथम पिता से अलग करते हैं पुत्री
दान करवा लेते हैं उसे सामान बना |

विद्यालय एक कहानी है |

बारह तेरह वर्ष के बालक को
टांगी से पेड़ काटते देख
या बेलचा से इंटा जुड़ाई का मसाला तैयार करते देख
मन में अब अलग भाव उपजते हैं
यह यह भी तो  किसी माँ का गौरव होगा
घर में इसकी माँ राह तकती होगी
शाम को  लौटेगा बेटा शहर से
लायेगा उसके सपने
चावल तभी न जलेगा चूल्हा
पढ़ाई लिखाई तो भरे पेट की कहानियाँ हैं |

रविवार, 9 जून 2013

वो समझदार था |


कहते हैं
पुरुष समझदार और सहिष्णु नहीं होते
पर वह समझदार था
पुरुषों की नौकरी छूट जाय तो मिलना मुश्किल है
वह अपने तीन वर्षीय पुत्र और बूढ़ी माँ के साथ घर में रहता था
घर के काम करता था
पत्नी सरकारी कर्मचारी थी
घर से कभी लडाई झगड़े की आवाज न आई
शादी विवाह त्यौहार में घर के चारो प्राणी घर से बाहर निकलते थे एकसाथ
अन्य दिन बूढ़ी माँ घर में रहती थी
और तीन प्राणी घर से बाहर निकलते थे
पड़ोसियों के लिए अजूबा घर था
जब पत्नी का ट्रांसफर हुआ
चारों  चले गये मुहल्ला छोड़ कर
वर्षों याद रखा हमने वो परिवार
आज लिपिबद्ध किया |

सीमा रेखा

सीमा रेखा है जरूरी सबके लिए
मित्र हों या सम्बन्धी
आभासी हों या वास्तविक |

मनुष्य अपनी रेखा खुद खींचता  है
और मान्यता देता हैं
उस रेखा को |

जिसने रेखा पार की
या तो वह शोषित हुआ या टूटा
और अकेला हुआ |

युवा सोंच


अपने घर की सफाई करें हम
छनने लगेगी रोशनी हमारे घर से
भटका राही राह पहचान लेगा |

दुसरे की गर्द क्या देखें
अपने कपड़े सदा साफ रखें
मन साफ़ हो जाएगा |

अँधेरे से घबराना क्या
सुबह तो आयेगी
घर युवा हाथों में जायेगा |

चलूँ रंग देखूं

जो मिला था वही अपना था
अब न जियें वो बिछड़ा पल
बढ़ते चलें  
बस बढ़ते ही चलें |

कितना सकून है चलने में
उन्मुक्त जीवन जीने में
निश्चिन्त हो चलते रहने में
दुनिया के रंग देखने में |

कुछ न मांगें हम

हम वो आजादी न चाहें
जो अपनों का लहू मांगे |
वह अरमान क्या
जो स्वजनों का अपमान करे |
हम जीयेंगे
अपने कौशल से |
हम आरक्षण न मांगें
हम भी सीख लेंगे जीने के गुर तुझे देख |
हम अभावग्रस्त हैं
पर हवा का बहाव पहचानते हैं |
हम दीवाल पर पड़ने वाली किरणों से
दिन बीतने का समय आंक लेते हैं |
हम कमजोर हैं
पर नासमझ नहीं |

दुल्लत्ती


बिगडैल समय
घोड़े सा दुल्लत्ती  देता है
आज सवारी का वक्त नहीं है
चलूं बांध दूं

अपने समय को |

युवा

शेर सा ही है
स्वाभिमानी युवा
खुद राह ढूंढता है
जंगल में |

कैसे बांधूं मन

भुलाए क्यों नहीं भूलते
अपमान के पल
हमें
दुःख देता है मन |
बारम्बार बुद्धि कहे
भूल जा
क्षमा बडप्पन है
काश मन भी उदार होता !

लड़ाकू

वह लड़ाकू था
वह लड़ रहा था निरंतर
मौसम से
लोगों की मिलती है धन दौलत
वसीयत में
उसे मिला था युद्ध कौशल |

चलते रहिये

सम्वेदनहीन बने रहिये
आगे बढ़ते रहिये
कंधे से कंधा मिलाईये 
मजबूत कदम रखते रहिये
सोंच विचार न कीजिये

बस चलते रहिये |

श्रद्धा


भय  से  उपजे  श्रद्धा
लोकलाज सींचे पौधा
खुश हूं
जय हो तेरी !
ओ मेरे कुलीन  प्राणी !

गुरुवार, 6 जून 2013

रेजा

मैं देखती थी
उस रेजा के चेहरे के स्वाभिमान को सदा
जो अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के
आती थी अपने काम पे
एवं भवन निर्माण के मध्यावकाश में
अपना टिफिन खोल
प्रतिदिन बांटती थी सब्जियां
अपने सहकर्मी कुली और मिस्त्रियों को
और मैं पढ़ती रहती  थी
मैं उन सहकर्मियों की आँखों की निरीहता
क्या इन पुरुष कर्मियों के घर में सब्जी पकाने वाली महिलाएं नहीं थीं
पर जिस दिन सुबह सुबह नये मजदूर रख
मालिक ने उन सब की छुट्टी कर दी
उस दिन का उस रेजा का अपमान से लाल चेहरा
आँखों में छुपी निरीह आशा की चिंगारी

भुलाये नहीं भूलती |

बुधवार, 5 जून 2013

सरकारी आफिस


बरसात में 
आफिस चूता है 
हम फाईल सूखे स्थान में रख 
पैर लम्बा करते हैं 
सूखे मौसम का सपना देखते हैं 
अब तो पसीना चूता है 
फाईल गीली होती है 
खिसके चश्मे को ऊपर सरकाते हैं |

मंगलवार, 4 जून 2013

क्यों रोयें भला


हंसने  का हुनर सीख
घर से निकले हम |

बाधाएं हैं पार किये 
विपदाओं से  क्यों डरें हम |

एक सपने की खोज में
पहाड़ पानी खेलें हम |

घोषित घरबार नहीं

हैं फक्कड़ राही हम |

रविवार, 2 जून 2013

वह और ख्वाब


छत पर पहुंचते ही
कट कर नीचे रह जाते हैं सारे रिश्ते
और रह जाते  हैं केवल उसके ख्वाब उसके साथ  |

तरह तरह के ख्वाब आने लगते हैं
मृत के ख्वाब के रुदन से ध्यान हटाने पर
अपाहिज ख्वाब सामने दयनीय खड़ा दिखने लगता है |

तभी दुखी मन से
एक  नया  ख्वाब जन्म लेता है
और प्रफुल्ल कर देता है उसके मन को |