शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

सयानी

आवे बाढ़ जब जब जी में
उमरि बहे
मातृभाषा में ........
रोकूँ मैं तो निज को
बन अज्ञानी
अनपढ़ सयानी
लिखना मैं तो देखो भूल चली
कैसे लिखूं
खो गये
ये लो अब तो
कलम कागज भी |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें