शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

हवा को आने दो

बाहरी दरवाजे
जब
बंद हो जाते हैं
तब
या तो अन्तर्मुखी विकास होता है ........
या
दिग्भ्रमित हो जाते हैं हम .......
अपनों पर अटूट विश्वास
जब
टूटता है
तब
हम मानसिक रोगी बन जाते हैं .....
हमारी जीत
या हार
हमारी सहनशीलता पर
या
निस्पृहता पर निर्भर करता है
आज की
भोगवादी संस्कृति में
हम खो रहे हैं
त्याग
और
हमारी औलाद भी सीख रही है
हमें देख कर
हमारा असंयमित व्यवहार
एक
एक नया समाज जन्म ले रहा है
और
हम बेहयाई से
हंस कर कह रहे हैं
यह तो
परिवर्त्तन है
शुद्ध
हवा है यह
हवा को आने दो |

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