बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

पन्ना उड़ गया

मेरी इतिहास की किताब 
का वह पन्ना 
पता नहीं कहाँ आंधी में उड़ गया 
जब उसने कहा ...
हम भी राजपूत हैं 
चौहान हैं 
सच्चा था 
या झूठा था वह 
जो भी था
पर मेरा शानदार पन्ना गुम गया
जब उसने कहा .....
चौकीदार हैं हम
आपका खाना बना देंगे हम ....
अकेले को
घर नहीं देते हम...
सुन
कह क्रूरता से
मेरे मना करने पर भी
वह बोल उठा
ठीक है
मेरी तो शादी नहीं हुयी है
माँ को लाऊंगा
गाँव से
वह आपका खाना बना देगी
आउट हाउस के कमरे की तलाश में आया था
वह
और मैं सोंच रही थी ........
एक राजपूत झाड़ू दे रहा है
दूसरा होटल में बेयरा है
कमा रहा है
पेट भरने को
और
आरक्षण का फायदा
न जाने कौन उठा रहा है ......
पल भर के लिए
राणा का नाम गुम गया
अन्धकार में .......
और मैं ढूंढ रही हूं
अब
धूल भरी राजपूतों की
शानदार किताब
हर पुरानी पुस्तक की दुकान में |

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