शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

अनुगामिनी का सुख

औरत
है अनुगामिनी
लात खाए
या प्यार पाए पिया का
जिसे न मिला पति
वो क्या जाने
पति सुख
क्या ही भला लगे पीछे चलना
मुझे तो
मुसीबतों का भाला न चुभे
भला चेत कर क्यों जलूं
अपमान सह
सीता सी क्यों धरा में समाऊं मैं
हंस कर क्यों न जी लूं आज
इतरा लूं मैं आज अपने सुहाग पे
उतारूं आज
मैं नई सुहागन की आरती
जय हो
कल की कल सोंचेंगे |





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