औरत
है अनुगामिनी
लात खाए
या प्यार पाए
पिया का
जिसे न मिला
पति
वो क्या जाने
पति सुख
क्या ही भला
लगे पीछे चलना
मुझे तो
मुसीबतों का भाला न चुभे
भला चेत कर
क्यों जलूं
अपमान सह
सीता सी क्यों
धरा में समाऊं मैं
हंस कर क्यों
न जी लूं आज
इतरा लूं मैं
आज अपने सुहाग पे
उतारूं आज
मैं नई सुहागन
की आरती
जय हो
कल की कल
सोंचेंगे |
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