अकेले होती
हूं
जब भी
सूनापन
बड़ा
भला लगता है ........
कुछ देर बाद
तौलने लगती
हूं
मन
की पांखें .......
रिश्ते
एक एक कर के
आने
लगते हैं पास .......
और
गिरह खुलने लगती है
पर
हर गिरह
छूछी ही मिलती
है ........
अंतिम गिरह
छोड़ देती हूं
भ्रम बना रहे
तो जीना अच्छा
लगता है |
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