गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

भ्रम अच्छा है

अकेले होती हूं
जब भी
सूनापन
बड़ा भला लगता है ........
कुछ देर बाद
तौलने लगती हूं
मन की पांखें .......
रिश्ते
एक एक कर के
आने लगते हैं पास .......
और
गिरह खुलने लगती है
पर
हर गिरह
छूछी ही मिलती है ........
अंतिम गिरह छोड़ देती हूं
भ्रम बना रहे
तो जीना अच्छा लगता है |

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