पलंग वाली
छोटी है
कुर्सी पर
बैठने वाली से
पर वह तो
पलंग वाली है न
तो बड़ी तो
जरूर हुयी जमीन पर बैठने वाली से
पति का
मनोरंजन करने वाली तो निकृष्ट है ही
कब समझ आयेगी
इन्हें
दुनिया तो
इनकी घूमती है इर्द गिर्द मर्द के
जरूरत के
अनुसार मर्द औरतों को नाम देते हैं
जिस दिन आम
औरतें मर्दों को अपनी सुविधानुसार नाम देने लग जायेंगीं
उस दिन वे
स्वतंत्र हो जायेंगी
शोषण मुक्त
हो जायेंगी
स्वन्तन्त्रता
प्राप्ति के लिए पहले जरूरी है
निज नैतिक
विकास करना
नहीं तो
चरमरा जायेगा वैवाहिक ढांचा
बिखरेंगे
रिश्ते
परिवार मन से
नहीं
बुद्धि से
चलते हैं
अभाव की भींगी धरती पर ही सत्कर्म के फूल खिलते हैं
सुविधाभोगी
मानव कभी स्वाभिमानी नहीं होता
केवल
उदंड होता है |
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