19.09.96
पिया है हर
पल गरल
कटा है मैंने
उसके विष को क्षमा द्वारा
जब जब संयम
का सिंहासन डोला है मेरा
तब तब मैंने
पीटा है स्वयं को
स्वाभिमान के
कोड़े से
अग्नि
परीक्षा देता तन
बार बार करता
है प्रश्न मौन
कब तक बचा
पाउंगी स्नेह के पुष्प को
कहीं
झुलस गया तो !
सम्पूर्ण
चेतना शक्ति द्वारा
बचाया है
मैंने प्यार के पात्र को
बंद करो यह
लुकाछिपी
बहुत हुआ
जीने दो मुझे
अपनी जिन्दगी |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें