पुत्र
मेरे !
माँ तेरी मैं
कैसे भूला तू
मुझे ?
विधवाश्रम में
बैठे बैठे
यूँ ही याद
आया मुझे तेरा बचपन
निज भविष्य
सुघड़ बनाने हेतु
माता का ऋण
कैसे भूला तू
जी लेती तेरे
घर में
तो श्री हीन
हो जाता तेरा घर क्या ?
मेरा भोजन ,
मेरी चिकित्सा , मेरा परिधान
क्या इतना
महंगा था कि
मुझ पर न खर्च
कर पाया तू ?
हंस ही लेती
तेरे संग
ढूंढती तेरा
बचपन
तेरी औलाद में
इतनी खुशी भी
तू न दे पाया
?
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