23.09.96
तुम्हारा मौन
चेहरा
तुम्हारा
पुराना स्पर्श
भर देता है
मुझमें असीम शक्ति
बसा
कर तुम्हें आंखों में
करती हूं
नित्य साधना एकलव्य सी
कभी कभी लगता
है
कोई तो ले रहा
है परीक्षा मेरे मनोबल की
और तब
तुम्हारा चेहरा आ जाता है सामने
हो जाता है मन
स्थिर
तुम्हारा
चेहरा देता है मुझे प्रेरणा
सबसे लड़ने की
तुम न सही
तुम्हारा
अस्तित्व है मेरी थाती
ईश्वर
तुम्हारे चित्त को रखे शांत
है मंगल कामना
मेरी |
सन्नाटे में
मेरे स्मरण
मात्र से तुम आ जाते हो
और थाम लेते
हो मेरा हाथ
मीलों चलते
हैं हम तुम मौन
मेरे दृढ कदम
बस आगे बढ़ते
रहते हैं
एक निश्चित
भविष्य की ओर |
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