1975
सारी दुनियां
सोयी थी जब
तारों की सुनी
महफिल में तब प्यारा सा इक चाँद उगा
दूर क्षितिज
पर नभ के इक सूने कोने में
शशि का क्षीण
अलोक बिखरा
अपने प्रिय का
लख नील गगन में मुस्काना
कुमुदनी का मन
झूम उठा
चांदनी निशा
में
नभ परियों के
कलरव से
फिर सूना आकाश
जगा
परियों के पग
पायल का रुनझुन रुनझुन
हर ताल बजा |
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