रविवार, 8 सितंबर 2013

चांदनी

1975

सारी दुनियां सोयी थी जब
तारों की सुनी महफिल में तब प्यारा सा इक चाँद उगा
दूर क्षितिज पर नभ के इक सूने कोने में
शशि का क्षीण अलोक बिखरा
अपने प्रिय का लख नील गगन में मुस्काना
कुमुदनी का मन झूम उठा
चांदनी निशा में
नभ परियों के कलरव से
फिर सूना आकाश जगा
परियों के पग पायल का रुनझुन रुनझुन
हर ताल  बजा |

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