1990
अच्छा तो
लगता है
बैठ जाने को
मन करता है
बरगद
की छांव में
पर कड़ी धूप जब
नियति बन जाती है
तब धूप में ही
मन - पुष्प
खिलने लगता है
पसीने की
खुशबू
इत्र सी मादक
लगने लगती है
आत्म - मुग्ध
सा मन
बस चलता रहता है |
बस चलता रहता है |
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