शनिवार, 7 सितंबर 2013

पसीना भी इत्र लगे

1990

अच्छा तो लगता है
बैठ जाने को मन करता है
बरगद की छांव में
पर कड़ी धूप जब नियति बन जाती है
तब धूप में ही
मन - पुष्प खिलने लगता है
पसीने की खुशबू
इत्र सी मादक लगने लगती है
आत्म - मुग्ध सा मन
बस चलता रहता है |

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