ओ ! पुरुष
देश को आजादी मिली
तुम आजाद हो गये पर स्त्री नहीं
अफ़सोस में है मन .....
निज सम्मान , स्वतंत्रता , समानता के लिए स्वजन से युद्ध !
आज युद्ध अवश्यम्भावी लग रहा है .....
घर घर में हो कर रहेगा निकट भविष्य में महाभारत
चेतना की लड़ी बिछी है हर घर में
चिंगारी लगने भर की देर है
कांप उठेगा आकाश
जब यह फूटना शुरू हो जायेगी
आखिर कितने दिनों तक रिश्तों का नाम दे
करोगे स्त्री का शोषण |
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