मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

मोह


रहने के लिये
कष्ट से बनवाये अपने मकान की
एक एक ईंट में
अपनी यादें बसी रहती हैं
जो वक्त के सीमेंट से जुडी रहती हैं
रंग - रोगन , झरोखे से झांकती हैं
हमारी खुशियाँ
रसोईघर से आती खाने की खुशबू
परस कर आई हमारी थाली
हमें तृप्त करती है
सामने पार्क में खेलते बच्चे देख
मन बच्चा बन जाता है
शरीर जोन ज्यों शिथिल होने लगता है
हम महसूस करने लगते हैं
अपनी नश्वरता का
और लगने लगता है
सब यादें , दृश्य यों ही छूट जायेंगे हमसे
सब रहेंगे
हमारी बंधी मुट्ठी खुल जायेगी
जहां मैं बैठा हूँ आज
वहाँ कल कोई और होगा ........
मोह भी क्या चीज है
जब तक जान है
तब तक मोह है
अपने हैं |

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