सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

उफ्फ ! सुबह हुई !


उफ्फ !
काफी रोशनी हो गयी !
जल्दी तैयार होना है
नाश्ता बनाना है जल्दी से
कम्प्यूटर खोलना है
कितने मिलनेवाले इंतजार कर रहे हैं
जल्दी उठूँ
गनीमत है आफिस का समय नौ बजे है
ये उसकी नौकरी ही है
जिसने उसकी रसोई का अत्याधुनिक बना दिया है
नहीं तो सुबह सुबह महरी के पीछे लगो
अरे !
लो सूरज भी निकल गया
उफ्फ !
समय कितनी तेज भागता है .......
वह चादर फेंक उठ खड़ी हुई |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें