शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

आया जाड़ा


आखिर आया जाड़ा
एक मौसम बीता
वो मुस्काई
अब उसे इंतजार है गर्मी का
पता नहीं जी पायेगी या नहीं
आशाएं मौसम से ही बंधती है
मौन झेलना है मौसम की मार
मुस्कुराना है
उसे हर मौसम के चले जाने के बाद
पल पल जीना भी एक अनुभव है
जुझारूपन रहने पर
खामोशी बातें करने लगती है
कभी मीठी
कभी कड़वी लगने लगती है
बीती यादें
और उस स्वाद के साथ
मन बुद्धि हाथ थामे चलने लगते हैं
स्वाभिमानपूर्वक |
ऊष्मा देते गर्म कपड़े प्रिय साथी आज
रहेंगे साथ साथ
महसूस करायेंगे अपनी उपस्थिति
उसे हर पल
पर
गर्मी के आते ही अलविदा कह देंगे उसे
कोई बात नहीं
एक मौसम का साथ हैं न
जब तक नयनों के दीप जलते हैं
मन को रोशन करते हैं
कल की कल सोचेंगे
आज पे अब हम चलते हैं
पलों का रस पीते हैं
मौसम को महसूसते हैं |

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