सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

लडका है न वो !




वो
छोटा था
हाथ पकड़ कर साथ साथ चलता था बहन का
बड़ा हुआ
साईकिल के पीछे बैठा कर पहिया मारने लगा
और बड़ा हुआ स्कूटी के पीछे बैठाने लगा
अब ट्रेन में बैठ कर होस्टल पहुंचाता है
कुछ दिन बाद
उसे बहन की खोज खबर लेनी पड़ेगी
उसकी ससुराल में जाकर
कितना बोझ ढोएगा वह
अपना परिवार ढोइए
माँ बाप ढोइए
रिश्तों को भी ढोएगा
असामाजिक कहलायेगा
आफिस में सामंजस्य बैठना है उसे
नहीं तो कमाएगा कैसे
वह आदमी नहीं गधा है क्या ?
इतनी आकांक्षाएँ हैं उससे
इस समाज को !
कालेज में !
आरक्षण है
नौकरी में आरक्षण है
प्रोमोसन में भी अरक्षण है
कहीं जाति के कारण
तो कहीं लिंग के कारण
कितना कठिन है
साँस लेना
इस माहौल में उसे
उसकी हर चाल को नापती रहती है लोगों की आँखे
लड़का है न वो |

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