सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

ये लडकियां !



हैरान है !
परेशान है मन
लड़कियों की सुविधाभोगी मनोवृत्ति पर
मातृत्व के नाम पर
मान पाती हैं
स्व खोकर
गोद के बालक को सहारा देते देते
कब सहाराहीन स्वयं हो जातीं हैं
जान ही न पाती वें |
होश आने पर
दिग्भ्रमित सी मुंह ताकती हैं सबका
लडकियां मात्र पत्नी और माँ ही नहीं एक वजूद भी हैं
यह उस लड़की को ही सोचना है
उसके अपनों को नहीं
श्रद्धा मान से पेट नहीं भरता
अपने बल पर जीने की वे कल्पना भी नहीं कर पाती |
बुढ़ापे में
मजबूरी के कारण अपनाया श्रम
कभी आनंद नहीं देता
यहीं नीव पड़ती है
वृद्धाश्रम की
बूढ़ी माँ सदा बोझ रहती है
मित्र हीन
ऑफिस , बाजार के कार्य में अनभिज्ञ
मात्र एक माटी की लोंदा
कितना कोई उसे ढोए
भगवान से सदा प्रार्थना करती रहती है
हे ईश्वर मुझे सुहागन ही उठा लेना |
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प्रार्थना नहीं कर्म कीजिये
ईश्वर भी कर्मठ की ही सहायता करता है |

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