दीदी !
तुम्हारा काम
छूट जायेगा
फिर तुम गरीब
हो जाओगी
कोई बात नहीं
मैं उस समय
अपने गुल्लक
के पैसे
दे
दूंगी तुम्हे ...
चार वर्षीय
बहन के
मुख से
शब्द
निकल पड़े ....
काश !
हममें भी एक
बालक जीवित रहता
महसूसता
दुःख
अपनों के
इतनी भी
क्या महत्वाकांक्षा !
भूलें हम जड़ों
को
थोड़ा तो
खिंचाव रखें हम
सुख दुःख
बांटे
हम अपनों से
नयी पौध
!
आज मेरा
आह्वान है तुम्हे
जकड़ लो
अपनी प्यार की
लताओं से
अपनों को
' कैसे '..... ?
यह तुम्हें
सोंचना है
नौकर से
समझौता कर सकते हो
तो अपनों से भी करो |