बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

प्यार की लता


दीदी  !
तुम्हारा काम छूट जायेगा
फिर तुम गरीब हो जाओगी
कोई बात नहीं
मैं उस समय
अपने गुल्लक के पैसे
दे दूंगी तुम्हे ...
चार वर्षीय बहन के
मुख से
शब्द निकल पड़े ....
काश !
हममें भी एक बालक जीवित रहता
महसूसता
दुःख
अपनों के
इतनी भी क्या महत्वाकांक्षा !
भूलें हम जड़ों को
थोड़ा तो खिंचाव रखें हम
सुख दुःख बांटे
हम अपनों से
नयी पौध !
आज मेरा आह्वान है तुम्हे
जकड़ लो 
अपनी प्यार की लताओं से
अपनों को
' कैसे '..... ?
यह तुम्हें सोंचना है
नौकर से समझौता कर सकते हो
तो अपनों से भी करो |






बूढ़े एक मुसीबत


सास की मौत क्या हुई
कमाऊ बहू पर और मुसीबत पड़ी
पुत्र को पत्नी के लिये
आफिस के पास
दुगने भाड़े पर मकान लेना पड़ा |
जीवनसंगिनी की आत्महत्या ने
ससुर को तोड़ दिया था
वे बीमार रहने लगे थे 
अस्पताल पास रहने से
पड़ोसी की सहायता ले कर 
ससुर स्वयं भी अस्पताल जा सकते हैं |
बच्चे की देखभाल करना अच्छा लगता है
सभी अपने औलाद की देखभाल करते हैं
आखिर बच्चे ही तो हमारा भविष्य हैं
उन्हें अच्छे विद्यालय
फिर अच्छे कालेज में पढ़ाना आसान नहीं हैं |
घर के बूढ़े तो बीता कल हैं
समय मिले तब न बैठें
बेटा बहू उनके पास !
कमरे में दूरदर्शन है
खाना तो हॉट केस में रखा है
और क्या चाहिए उन्हें ?
अब बहू नौकरी छोड़ कर ससुर को ' रामायण ' सुनाने से तो रही
अजीब मुसीबत हैं
फिर कमाऊ पत्नी की इज्जत तो करनी पडती है
अरे भई !
किस्मतवालों को मिलती है
अच्छेघर की लड़की
जिसे पैतृक संपत्ति भी मिलनेवाली हो |

सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

उफ्फ ! सुबह हुई !


उफ्फ !
काफी रोशनी हो गयी !
जल्दी तैयार होना है
नाश्ता बनाना है जल्दी से
कम्प्यूटर खोलना है
कितने मिलनेवाले इंतजार कर रहे हैं
जल्दी उठूँ
गनीमत है आफिस का समय नौ बजे है
ये उसकी नौकरी ही है
जिसने उसकी रसोई का अत्याधुनिक बना दिया है
नहीं तो सुबह सुबह महरी के पीछे लगो
अरे !
लो सूरज भी निकल गया
उफ्फ !
समय कितनी तेज भागता है .......
वह चादर फेंक उठ खड़ी हुई |

ये लडकियां !



हैरान है !
परेशान है मन
लड़कियों की सुविधाभोगी मनोवृत्ति पर
मातृत्व के नाम पर
मान पाती हैं
स्व खोकर
गोद के बालक को सहारा देते देते
कब सहाराहीन स्वयं हो जातीं हैं
जान ही न पाती वें |
होश आने पर
दिग्भ्रमित सी मुंह ताकती हैं सबका
लडकियां मात्र पत्नी और माँ ही नहीं एक वजूद भी हैं
यह उस लड़की को ही सोचना है
उसके अपनों को नहीं
श्रद्धा मान से पेट नहीं भरता
अपने बल पर जीने की वे कल्पना भी नहीं कर पाती |
बुढ़ापे में
मजबूरी के कारण अपनाया श्रम
कभी आनंद नहीं देता
यहीं नीव पड़ती है
वृद्धाश्रम की
बूढ़ी माँ सदा बोझ रहती है
मित्र हीन
ऑफिस , बाजार के कार्य में अनभिज्ञ
मात्र एक माटी की लोंदा
कितना कोई उसे ढोए
भगवान से सदा प्रार्थना करती रहती है
हे ईश्वर मुझे सुहागन ही उठा लेना |
..............................................
प्रार्थना नहीं कर्म कीजिये
ईश्वर भी कर्मठ की ही सहायता करता है |

लडका है न वो !




वो
छोटा था
हाथ पकड़ कर साथ साथ चलता था बहन का
बड़ा हुआ
साईकिल के पीछे बैठा कर पहिया मारने लगा
और बड़ा हुआ स्कूटी के पीछे बैठाने लगा
अब ट्रेन में बैठ कर होस्टल पहुंचाता है
कुछ दिन बाद
उसे बहन की खोज खबर लेनी पड़ेगी
उसकी ससुराल में जाकर
कितना बोझ ढोएगा वह
अपना परिवार ढोइए
माँ बाप ढोइए
रिश्तों को भी ढोएगा
असामाजिक कहलायेगा
आफिस में सामंजस्य बैठना है उसे
नहीं तो कमाएगा कैसे
वह आदमी नहीं गधा है क्या ?
इतनी आकांक्षाएँ हैं उससे
इस समाज को !
कालेज में !
आरक्षण है
नौकरी में आरक्षण है
प्रोमोसन में भी अरक्षण है
कहीं जाति के कारण
तो कहीं लिंग के कारण
कितना कठिन है
साँस लेना
इस माहौल में उसे
उसकी हर चाल को नापती रहती है लोगों की आँखे
लड़का है न वो |

रविवार, 28 अक्टूबर 2012

हम बेटी हैं



यह धरती उतनी ही हमारी  है
जितनी तेरी है |
जेवर पहना कर हमें तुम
लूटने का आतंक दिखा सकते नहीं |
हम भोग्या नहीं शक्ति हैं
हमें कोई बंधक बना सकता नहीं |
माँ हैं हम जला देंगे तुझे
आँखों की चिंगारी से |
छूना न औलाद हमारी
निशानी तुम्हारी मिटा देंगे |
जल की ज्वाला हम
समझ न हमें मस्ती की फुहार |
कमजोरी न समझ हमारा मातृत्व
शेरनी हैं हम फाड़ेंगे हर निकटस्थ दुश्मन को |
तू क्या दिखायेगा आँख हमें
हम तेरा पिंडदान कर देंगे |
सोयी ज्वालामुखी हैं हम
सोने दो आज हमें |
ललकार तू अब
जगाहमारे आत्मसम्मान को |
हम जागे तो
विध्वंस दर्शक न रह पायेगा |

नया सबेरा


हम निर्माता जग के
नया सबेरा लायेंगे |
हम विद्यार्थी
अपनों को नया पाठ पढ़ाएंगे |
हम कतरेंगे
विद्याध्ययन से अभाव के पर |
हम अबोध नहीं
उड़ायेंगे ज्ञान पताका अपनी |
हम बांधेंगे
मौसम को अपने धागे से |
हम होने देंगे सूखी
निज धरा |
हमें समझना कम
हममें है जोश वक्त का |
हम भी देखेंगे
कैसे उड़ेगी ये मंहगाई चील |
हम आँख निकलेंगे इसकी   
ज्यों ही यह धरा पे आयेगी |
छोटे हैं
पर समझ बड़ी है |
देखना हम पढ़ाएंगे पहाड़ा एकदिन
कालेधन के संग्रहकर्ता को |
हम बालक बालिका
एक दिन उदाहरण बन जायेंगे |

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

बेटी


री !
बेटी
तू मेरी आकांक्षा
तुझमें हो पूरी
मेरी आशा
तेरी आँखों से
देखूं
मैं सपना
तेरी खिलखिलाहट पर
मैं मुस्काऊँ
तेरे रुदन पर
मैं मौन देखूं तुझे
हथेली पर बैठा तुझे
छुआ दूँ चाँद
मेरा परिमार्जित रूप तू |

आया जाड़ा


आखिर आया जाड़ा
एक मौसम बीता
वो मुस्काई
अब उसे इंतजार है गर्मी का
पता नहीं जी पायेगी या नहीं
आशाएं मौसम से ही बंधती है
मौन झेलना है मौसम की मार
मुस्कुराना है
उसे हर मौसम के चले जाने के बाद
पल पल जीना भी एक अनुभव है
जुझारूपन रहने पर
खामोशी बातें करने लगती है
कभी मीठी
कभी कड़वी लगने लगती है
बीती यादें
और उस स्वाद के साथ
मन बुद्धि हाथ थामे चलने लगते हैं
स्वाभिमानपूर्वक |
ऊष्मा देते गर्म कपड़े प्रिय साथी आज
रहेंगे साथ साथ
महसूस करायेंगे अपनी उपस्थिति
उसे हर पल
पर
गर्मी के आते ही अलविदा कह देंगे उसे
कोई बात नहीं
एक मौसम का साथ हैं न
जब तक नयनों के दीप जलते हैं
मन को रोशन करते हैं
कल की कल सोचेंगे
आज पे अब हम चलते हैं
पलों का रस पीते हैं
मौसम को महसूसते हैं |

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

ओ रे ! मानव


घर में माँ को पूछते नहीं
मंदिर में पूजते हैं
सच में सजीव है माँ मंदिर में
तो कभी न करेगी
पूरी अभिलाषा तेरी रे !
रे !
सुन मानव !
प्रथम पूजा घर से होती शुरू
घर की पूजा
कोई देखे ये सोंच
देखनेवाला
देख ही लेता है
माँ की चाहत भूल
चला तू मंदिर में
कर्मकांड करने
ये कैसी नासमझी ?

दान न दें


पैसे न दें
भूखे को
काम के बदले
भोजन दें
दान
भिक्षावृत्ति को
बढ़ावा देता सदा
काम दें
कर्मठ बनाएं
व्यक्ति को
दान कर
पुण्य कमाने का
सपना छोड़ें
सत्कर्म करें आप
टैक्स की छूट से बचने के लिए
आपने जो दान किया
क्या भला किया ?

लड़कियों को मोबाइल न दें

क्या सोंच है !
सर !
लड़कियों के
घर से भागने की वजह
मोबाइल फोन है
मोबाइल फोन बच्चों को
न दें
खासकर लड़कियों को
सर !
आप ऐसा बोलेंगे !
तब  बेटा बेटी को कौन बराबर सोंचेगा ?
मोबाइल के
अविष्कार से पहले
लड़की कभी न भगाई जाती थी
आपकी बातों से
मुझे विश्वास हो चला है
मैं भी आपकी तरह
सोंचने लगी हूँ
पर फिर दहेज नहीं रहने पर
ब्याह कैसे होगा किसी लड़की का
मैं ये सोच कर
परेशान हूँ |

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

प्रथमाष्टमी


ओडिसा में
हर पहली संतान
बेटा हो हो या बेटी
करती प्रथमाष्टमी का इंतजार
..........................
यही वो दिन होता
जब  उन्हें
नए कपड़े पहना कर
माता पूजती
इस दिन लिंगभेद
मुंह छुपाये रहता |

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

बच्चों की माँ


मेरी माँ
बुरबक है ....
अरे !
मेरी माँ तो घोंचू है ....
तिलमिला गया मन
इन संबोधनों से माँ के प्रति
आखिर क्यों लगती है माँ
श्रीहीन
औलादों को ?
अपनी संतान के
अपने प्रति
इस नजरिए को
आप नजरअंदाज
करें
यह हल्की बात नहीं है
बीज है
जो कुछ काल पश्चात्
एक बड़ा वृक्ष बनेगा
आप
उस वृक्ष का फल
खाने को मजबूर होंगी |

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

हाइकू - 50


खोया आदमी
बस कमा रहा है
भूला है जीना |


एक तड़प
बस सहे जा रहा 
ये कैसी सोंच |

कल जानें
पर दौड़ रहे हैं
भला क्यों हम ?

रुक थोड़ा सा
जी ले पल भर तू
साँस ले थोड़ी |


बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

बच्चों के सपने


दोनों बच्चे
अपने अपने भविष्य के प्रति
जागरूक थे
माँ !
मैं खूब पढूंगा
विदेश जाऊंगा
बड़ा आदमी बनूंगा ... ..
माँ !
मैं भी खूब पढूंगी
नौकरी करूंगी
मैं शादी उसीसे करूंगी
जो मेरे साथ रहेगा
मैं तो माँ को छोड़ नहीं सकती |....
माँ गुमसुम सी
सुन रही थी सपने |

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

पिता का घर


उपहार के अभाव में
छूट जाता है बेटी से
पिता का घर !
अरे !
वह आपका अपना घर है
संकोच कैसा
ठाट से जाईये
जब तक माँ-बाप जीवित हैं
उनके दुःख बांटिये
बीसों बार जाईये
नहीं बुलाने पर भी जाईये
जबरदस्ती जाईये
खून के रिश्ते
न छोड़िये
टूटे तो न बने
अपनों से कैसा मान !
नवमी का त्यौहार है
बेटी की शक्ति का त्यौहार है
उपहार लीजिए
दीजिए उपहार
देखिये !
बेटी की कमाई से
मिले उपहार से
कैसे दमकता है
जन्मदाता का चेहरा |