- इंदु बाला सिंह
ये कैसा क़ानून है
जो जीता है
स्वार्थी की जेब में .......... क्रूर हृदया के पर्स में ......
ऊंघता है लाइब्रेरी की पुस्तकों में ..........
फिर
लाइब्रेरी तक पहुंच कर लौटने के लिये
पेट और जेब का भरा होना भी उतना ही जरूरी है
जितना
आँखों में रोशनी होना ........
और
तब बेहतर लगने लगता है
बोना
समय के बीज अपने पैताने ।
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