गुरुवार, 7 जनवरी 2016

न जाने क्या क्या सोंचते हैं ये



- इंदु बाला सिंह

उधार लेने वाले खुश रहते हैं
उधार का .... राशन ... नया मकान  ...... बेटी का ब्याह  .....
हैसियत दर्शाती है
हमारी
हमारी उधार लेने की क्षमता  ......
जिंदगी भर
मध्यम रोशनी में पढ़ते रहते हैं
लिखते रहते हैं
न जाने क्या क्या सोंचते हैं  ......... खोजते हैं  .......
समाज से अलग थलग पड़े
खुद को बुद्धिजीवी कहलाते  बिसूरती संतानों के पिता ...... संतान  का मुंह जोहती मातायें |

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