07
January 2016
22:05
-इंदु बाला
सिंह
न जाने कैसा
प्यासा पल था वह
और
पी ली थी
मैंने
सम्मान की ज्वाला ...........
धधक रही है
अब तक
वह
सुलगते रहते
मन
के अवसाद ..........
सोता है
ज्वालामुखी अंतर्मन में
अंधियारे में
शीतल लेप लगाती
चेतना बेसुध
करती
सुला देती तन
........
पर
मन न सोता
इन्तजार करता
वह
भोर का |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें