शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

पुराने शहर का मोह


 

 

लौट के आई अपने पुराने शहर में

 

पुरानी सड़कों पर पुराने परिचित याद आते हैं

 

फर्राटे से वे स्कूटर पर गुजर जाते हैं

 

अस्पताल के कॉरिडोर में मां चलती दिखती है

 

कैबिन में सोए पिता दिखते हैं

 

कॉलेज यूनिफॉर्म में साइकिल चला कर लौटते आकृतियों में

 

मैं खुद को पाती हूं

 

मन करता है छोड़ दूं शहर

 

यूं लगता है

 

कब्र से जीवित हो उठे हैं लोग

 

 

 

 

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

दुर्गा मंडप

 

 


 

 

पूरा मैदान बांसों अंटा था

 

मजदूर खोल रहे थे टेंट खोल रहे थे

 

जूठे पत्तल पड़े थे

 

सफाई कर्मचारी झाड़ू ले के लगे थे

 

सफाई में

 

सड़क पर दुर्गंध फैल रही थी

 

चलना मुश्किल था

 

और

 

मुझे

 

पूजा के समय की खुशी , रौनक , भीड़ और दर्शकों को अनुशासित करते

 

हाथ में लाल हरी बत्ती लिए

 

पुलिसगण याद आए

 

दुर्गा पूजा खत्म हो चुकी थी ।

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

घड़ा

घड़ा

 

घड़ा फूट गया सुबह सुबह ।

 

अब घड़ा खरीदना था

 

कभी घड़ा हनुमान वाटिका के पास मिलता था पर अब नहीं। किसी ने बताया छेंद वेजीटेबल मार्केट में मिलता है ।

 

वैसे मुझे पता है सुराही गमला ओल्ड राउरकेला के एक दुकान में मिलता है

 

दुर्गा पूजा चल रही थी । विजय दशमी बीती । चार दिन से एक घड़े से काम चल रहा था । दो घड़ा रहाे से लगातार ठंडा पानी मिलता है ।

 

खुशियां के दशमी के दो दिन बीतेन पर निकली घड़े के दुकान की खोज करने ।

 

घड़े की दुकान बंद थी । पास के गन्ने के रस के ठेलेवाला ने बताया कि दुकान दो दिन बाद खुलेगी ।

 

अब बहंगी में पास के गांववाले तो बेचना बहुत साल हुए घर घर जा कर बेचना बंद कर दिए ।

 

हार कर मैं ओल्ड राउरकेला की ओर बढ़ी । वहां बरसों से एक दुकान है जहां मिट्टी के छठे बड़े गुल्लक , सुराही , गमले और घड़े बिकते मैने देखा था । अब घड़ा साल भर बिकता है कि नहीं पता नहीं।

 

घड़ा खरीदने की जरूरत का जुनून थाआखिर ठंडा पानी पीन था मुझे । फ्रिज का पानी थोड़कोई पीता है ।

 

पहुंच ही गई गमले की दुकान परवहां एक घड़ा मुझे दिख गया

 

दाम पूछने  पर दुकानदार ने एक सौ पचास बताया

 

मैने पूछा - घड़ा फूटा तो नहीं है न ।

 

नहीं आंटी। फूटा नहीं है ।- दुकानदार ने कहा

 

इसी बीच किसी दूसरे सज्जन को भी घड़ की जरूरत पड़ गई

 

उसने भी घड़ का दाम पूछापर उसे घड़ का दाम ज्यादा लगा

 

उस सज्जन को लगा कि एक ही घड़ है । दुकानदार ने समझाया मेरी दुकान की डबलछत्ती मे घड़ा भरा है । फिर भी ग्राहक चला गया

 

मैं तो घड़ा के मिलने पर इतनी प्रसन्न थी मानो मुझे कारु का खजाना मिल गया

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

मैं लेखक बनूंगी ।


 

 

 

नौकरी करने की मंजूरी नहीं मिलेगी

 

उसे ससुराल में

 

मैके में लोग नसीहत देते थे

 

उसने सोचा

 

कोई बात नहीं  वह लेखिका बन जाएगी

 

खाली समय में कहानियां या उपन्यास लिखेगी

 

यह भी तो एक जरिया है कमाने का ......

 

घर में आर्थिक अभाव था

 

खाने की चिंता थी

 

कर्जों का बोझ था

 

दिमाग कलाबाजियां खा रहा था

 

जीवनसाथी घर छोड़ कर चला गया

 

हाड़ तोड़ परिश्रम कर रही थी कमाने के लिए ...

 

जीवन

 

स्वयं एक उपन्यास बन गया

 

पर

 

वह लेखक न बन सकी ।

 

 

उस बावरी को ज्ञान न था

 

लेखन भरे पेट के संग चलता है .......

 

जीवन संध्या आ गई

 

हसरत से देखती रह गई वह

 

अपने बचपन के स्वप्न को

 

जो उसके संग मिटने वाला था एक दिन ।

 

 

शनिवार, 20 सितंबर 2025

पोटली में टिका इंसान


 

 

पोटली में सिमटे मित्र को कोई लेने न आया

 

परेशान था मन

 

एक दिन मैं भी तो पोटली में  समा जाऊंगा

 

बैंक का अकाउंट तो खाली हो जाएगा

 

पर मै भी पोटली में पड़ा रह जाऊंगा

 

मेरे इस विचार पर 

हंस दी बुद्धि ।

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

बेटी

 

 

 

 

सीख कर बड़ी हुई वह

 

पढ़ लो

 

मुसीबत में काम आयेगा

 

उसने सोचा

 

मुसीबत में काम आने वाले विषय को क्यों पढ़ूं

 

क्या मैं मुसीबत के आने का सपना संजोऊं

 

उसका मन पढ़ाई से उचट गया

 

किस्मत ने खेल खेला

 

मुसीबत आई

 

कम डिग्री में छोटे काम कर के कामना पड़ा उसे

 

अपनी बेटियों को उसने मर्द की तरह कमाने की नसीहत दी

 

बेटियां

 

घर की तलाश में भटकती रहीं 

 

खटती रहीं

 

अपना पेट भरती रहीं

 

घुटती रहीं।

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

पत्नी

 

 

पत्नी

 

 

मैं

 

उसकी पत्नी हो कर

 

प्रजा होती तो अच्छा होता

 

कम से कम अपना हक खोने का अफसोस न होता ।

बुधवार, 20 अगस्त 2025

पूरा आकाश मेरा है


 

 

आज बंबई में

 

कॉलोनी की औरतें

 

दिख रहीं हैं शाम से देर रात तक पार्क में

 

छोटे टी शर्ट हों

 

या

 

लॉन्ग कमीज

 

निकर हो

 

या

 

ट्राउजर्स 

 

 शाम के सात बजे हों या रात के ग्यारह बजे हों  

 

 जब समय मिले घुमातीं हैं अपने बच्चे .......

 

 जिनके बच्चे बड़े हो चुके है

 

वे औरतें भी

 

खुद सेहत बनाती है........

 

रात ग्यारह बजे उनकी शाम ही है

 

आत्मविश्वास से भरी ये औरतें

 

जीतीं हैं अपना जीव

 

बच्चियां हों या बड़ी औरतें हों

 

उनका आत्मविश्वास

 

मेरे पंखों को मजबूत करता है

 

मैं भी वाकिंग करती रहती हू

 

उन युवा औरतों को दे

 

मैं भी युवा बन जाती हू

 

 यूं लगता है

 

मैं इस समयमं सत्तर वर्षीया नहीं हू

 

युवा हू

 

आज

 

मै जी रही हूं आजाद जिंदगी

 

मेरा आकाश आधा नहीं

 

पूरा का पूरा मेरा है ।

बेटा तो पिता का है

 

 

 

देख के ब्याहना बिटिया

 

कितना भी सुलझावो बेटे की समस्या

 

बेटा सदा सहानुभूति रखेगा अपने पिता के प्रति

 

भले ही पिताें लाख अवगुण हों

 

वो नहीं दिखेगा उसके बेटे को ......

 

बेटा कभी मां का साथ नहीं देगा

 

बेटे को तो पितानना है एक दिन

 

मां उसके लिये ऐसी सेविका है

 

जो बूढ़ी होने पर बोझन जाती है एक

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

रो लेने दो

 

 

 

 

अपने प्रिय की मौत की ही तरह

 

तोड़ देती है

 

सपनों की मौत भी इंसान को .....

 

बेहतर है

 

उसे रो लेने दो

 

जी भर के ।

 

 

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

अपना घर


 

 

 

कैसी होती होगी वो उम्र

 

अजीब होती होंगी वे लड़कियां

 

सपने देखती होंगी जो

 

किसी लड़के का घर

 

सजाने का

 

आंगन में फूल खिलाने का ..........

 

 

आज साठ वर्ष की उम्र में

 

याद कर रही हूं

 

उन स्वप्निल लड़कियों को .......

 

काश

 

लड़कियां अपने मकान का सपना देखतीं ।

 

 

शनिवार, 19 जुलाई 2025

भूख और पैसा


 

 

भूख है

 

टैक्स है

 

मंहगाई है

 

मकान की कमी है

 

डिजिटल पेमेंट कौन ले और कौन दे

 

हाथ में सब्ज़ियो के पैसे चाहिए

 

डोसा के पैसे चाहिए

 

समोसे के पैसे चाहिए

 

चाय के पैसे चाहिए

 

पेट्रोल के पैसे चाहिए

 

घर खर्च चलाना है

 

दवा के पैसे चाहिए

 

रिश्ते तो भूल गए

 

मां बाप को भी भूलने लगे है

 

पत्नी तो दूसरे घर की है

 

पति तो दूसरे घर का है

 

अपने बच्चों के लिए जद्दोजहद कर रहे  हम

 

सभ्यता की ओर अग्रसर हो रहे हम

 

जी रहे है हम

 

रीढ़ मजबूत है

 

लड़ रहे समय से हम

 

कमा रहे है

 

पैसे ला रहे है

 

पैसों से घर है

 

पैसों को धूल समझना साहित्य ने सिखाया है

 

पैसों से ही हम है

 

हमारी नस्लें है

 

 

 

 

कोई भय नहीं

 


 

 

 

 

 पार्क में खदबदाये विचार

 

जा रही हूं शहर से

 

मोह है

 

शहर छूटता जा रहा है........

 

शहर से निकल पा रही हूं

 

जीवित हूं तभी न

 

आगे बढ़ रही हूं

 

कुछ अंतराल पर रुकावटें आ जाती हैं

 

सामने अंधियारा हैं

 

एक दीपक जल रहा है

 

उसी ओर बढ़ना है

 

राह की कंटीली झाड़ियां काटनी है

 

भिड़ना है बनैले पशुओं से

 

झाड़ियां काटनी है

 

बढ़ते जाना है

 

बढ़ते ही जाना है

 

अंतराल आते रहें

 

राह में

 

कोई भय नहीं ।

मकान


 

 

देखती हूं

 

आमदनी कम है

 

पर

 

खूबसूरत मकान है कुछ लॉगों के  पास

 

उनके पूर्वजों के मकान है उनके पास

 

खूबसूरत मकान में रहते हैं वे

 

छत की उन्हें चिंता नहीं

 

आखिर क्यों भटकती  हूं मैं

 

मकान की तलाश  मे

 

कमाते हुए जीव कटा

 

किराए देते देते प्राण सूखते रहे

 

दिन कटते रहे

शनिवार, 12 जुलाई 2025

संध्या

 


 

पुरुष अहंकारी होते हैं

 

संबंध कोई भी हो

 

सत्ता हस्तांतर नहीं करते हैं

 

निकटस्थ महिला को.....

 

यह ज्ञान

 

पुस्तकों से नहीं

 

अनुभव से पाया

 

जीवन संध्या ज्ञात कराई

 

सारा जीवन 


आनंद नहीं प्रयोगशाला रहा

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

ननद मैके में


 

 

दुकान से चार सेट हार खरीद कर चढ़ा दिये दुल्हन पर

 

दुल्हन घर आई

 

ले लिया पति महोदय ने तीन हार

 

कहा

 

बहन के लॉकर में रख दूंगा

 

ब्याह हुआ घर में

 

दुल्हन का इकलौता हार बिक चुका था

 

ननद ने अपना हार दिया पहनने को अपनी भाभी को

 

भाभी तमकी

 

मेरा हार दो

 

मैं क्यों तुम्हारा हार पहनूं

 

रो दी ननद

 

पिता के सामने

 

कितना बदनाम किया था भाई ने बहन को ।

 ......................



नई दुल्हन आई थी

 

दबे जबान में ससुर कहने लगे

 

ब्याह तय होते समय लड़की ने कहा था

 

घर में ननद है

 

वो ससुराल में नहीं रहेगी ब्याह के बाद ।

क्या कहूं


 

 

कितना भी  बराबरी कर ले पिता

 

अपने बेटे बेटी में

 

उनके बचपन में

 

पर

 

बेटी को विदा कर

 

अपने मकान से बेदखल कर देता है वह 


अपनी बेटी को

 

बेटा ही उसका अपना है

 

बेटी नहीं

 

इसे पितृसत्ता न कहूं तो क्या कहूं

 

बताओ जरा ।

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

एक सलाह


 

अब

 

तुम

 

नहीं करोगे अपने मन का

 

अब ज्यादा दूर जाना ठीक नहीं

 

और कितना बिखरोगे  तुम

 

कमजोर हुई हैं

 

पाँखे तुम्हारी

 

मन के जोश से उड़ेगा पंछी

 

तो राह में गिर जाएगा .....

 

अब सुनना है तुम्हें अपने पिता की ...अपनी मां की

 

श्रम करो

 

नीड़ बनाओ

 

पास के पेड़ पर

 

जियो

 

खुश रहो ।

शुक्रवार, 27 जून 2025

मां का मन कहे


 

 

बेटा मेरा है 


 उसका परिवार मेरा है


 वो

 

क्यों खर्च करता है अपनी ब्याहता बहन पर

 

समझना चाहिए उसे

 

बहन अब दूसरे घर की सदस्य है

 

अपने सुख दुःख बह को खुद झेलना है ।

 

बुधवार, 18 जून 2025

ये कैसा मान महिला का





ड्राइंग रूम और पार्टियों के मुद्दे होते महिला दिवस 
फिर 
अपने घर में सो जाती हैं ...... बिला जाती हैं आम औरतें ........... 
घर में 
पिता को नहीं भाती समानता अपने बेटे से 
अपनी ही बेटी की 
माता को न महसूसता दर्द अपनी बेटी का 
तो कैसा महिला दिवस 
और 
कैसा मान महिला का ........ 
अरे ! 
अपाहिज बना दिया है तुमने बेटी को आरक्षण दे के ....... 
तुमने उसे महसूस कराया है ........ विश्वास दिलाया है 
कि 
वह दुर्बल है ....... 
वर्ना
वह भी खूब समझती है दुर्बलता पुरुषों की 
जो राज करता है 
औरत की दया ... करुणा के बल पे ...... 
और 
शोषण करता है 
अपनी निकटस्थ कमजोर स्त्री संबंधी का ।

मैं अपना भाग्य विधाता हूं ।



15 August 2015
00:51



आजादी का जश्न मनाते वक्त 
याद आये 
मुझे 
मेरे जन्मदाता 
जिनके 
त्यागपूर्ण जीवन के बल पे 
सदा जलती रही 
कुछ कर गुजरने की लौ 
मेरे मन में .......
आज 
इस सम्मानजनक समाज में 
क्यूं न याद करूं मैं 
अपना ...........आर्थिक अभाव ........
बदली मैंने अपनी किस्मत 
अपने छोटे छोटे हाथों से ......
आज खोली जो मुट्ठी मैंने अपने अंधेरे कमरे में 
तो 
रोशन हो गया .......
मेरा कमरा .........मेरा जहाँ ........
मैं अपना भाग्य विधाता हूं |

शनिवार, 14 जून 2025

गोल्ड डिगर








बेटे को हक है 

अशक्त  उम्रदराज मां को चार बातें सुनने का 

और 

मां का फर्ज है अपने कमाऊ बेटे के बोल सुनने का .... 


आखिर 

वो बेटोंवली विधवा है ।


आज मैं सोचूं 

समय रहते मां ने पुनर्विवाह कर लिया होता 

तो 

शायद अच्छी जिंदगी होती 

इस मां की 

कम से कम गोल्ड डिगर 

 न कहलाती मां।

सोमवार, 9 जून 2025

कर्तव्य बोध

 

 

 

 

ससुराल अपना है

 

मैके के प्रति कर्तव्य बोध है

 

कर्तव्य बोध लिए जीवित रहे

 

मैंका मिट गया

 

यह कैसा  बोध था

 

जो

 

सदा तड़पता रहा .....

 

अज्ञानी ही भले थे ।

बुधवार, 21 मई 2025

अज्ञानता

 

 

 Date 5 फरवरी 2025

 

री लड़की !

 

कहाँ से सीखा भूलना जड़ें

 

अज्ञानता अपना संविधान की ....

 

पैरासाइट बनना

 

अपने मर्द के मिट्टी में मिलते ही

 

एक दिन   


तू अपनी पहचान खो देगी ।

निकल पड़

An two year old poem


 

 

  

 

 

 

आपका नाम ले कर पुकारने लगे

 

जब आपकी औलाद

 

तब

 

समझ लीजिये

 

वह

 

अब आपके रिश्ते को नहीं मान देता

 

निकल पड़ इंसान

 

अब इस घर को तेरी ज़रूरत रही

 

लौट अब

 

अपने जन्मस्थान की ओर

 

क्यों पुकारती तू

 

ईश्वर मूर्ति में नहीं है

 

मंदिर में नहीं है

 

वह

 

तुझमें है

 

मान रख अपना ।

 

 

आना जाना


 

 

 

घर से किसी का जाना दुख देता है

 

और

 

आना खुशी

 

दुःख और सुख एक दूसरे का मुंह नहीं देखते

 

 

अनोखा रिश्ता है उनका

 

 

पर

 

 

रहते है वे हमारे घर में ही ।

सोमवार, 19 मई 2025

तलाक़

 

 

 


 

 

जुड़ते हैं

 

 

दो परिवार

 

मुहल्ले

 

शहर या गांव

 

राज्य

 

देश

 

संस्कार

 

किसी ब्याह में

 

न कि केवल लड़का लड़की 

न जुड़ पाए 

तो

निश्चित है तलाक़।

रविवार, 11 मई 2025

समतल जीवन की परेशानी


 

 

 

परेशान हूं

 

मैं

 

अपनी समतल जिंदगी से

 

भाता है

 

मुझे कामवाली का जीव

 

आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों से जूझता उसका जीव

 

वह कहती है

 

मेरी बेटी को परेशान करते हैं सड़क पर मनचले

 

मेरा आदमी सुबह पांच बजे का निकला रात दस बजे लौटता है

 

उसकी हर समस्या से मैं वाकिफ हूं

 

अपने कुक, ड्राइवर और माली की समस्या से भी मैं वाकिफ हूं

 

आर्ट मूवी भाती है मुझे

 

कलफ लगी साड़ी पहने लगता है

 

किसी अन्य लोक की अपरिचित हूं अपने शहर के अंदर

 

समस्याओं का ग्राफहो हल करने को

 

जीवन सरल रेखा है

 

मौत है भावनाओं की

 

इंसान रोबोट है

 

जिसका कुछ महीनों बाद सर्विसिंग होता है

 

हर कुछ महीनों बाद

 

 

 

 

 

 

 

मुक्ति


 

 

 

अकेलापन और असहायता साथी होते हैं जीवन संध्या में

 

हाथ में रुपया नहीं

 

रहने को घर नहीं

 

इंतजार करूं मैं

 

बुलावा का

 

मुक्ति का

 

दिल भर गया

 

दुनियां से ।

 

 

रविवार, 4 मई 2025

नौकरी चाहिए

 


 

 

गार्डनर ने कहा

 

उसे दस हजार मिलते हैं

 

स्वीपर ने कहा

 

उसे दस हजार मिलते हैं

 

पलंबर ने कहा

 

उसे बारह हजार मिलते हैं

 

किसी की वार्षिक बढ़ौतरी न थी  

 

और

 

न ही पी ०एफ ० की व्यवस्था

 

 

बुढ़ापा के बारे में सोचने का समय नहीं था किसीको

 

मैं खुद नौकरी के लिये भटक रही थी ।

शुक्रवार, 2 मई 2025

ब्याह के बाद



आख़िर  मेरी पहचान क्या है 

मैं कौन हूं •••••

उठता है  मन में प्रश्न 

बीता कल  संघर्षमय  था 

अकेले लड़ रही थी मैं 

जिम्मेवारियां थीं ••••••

जिम्मेवारियां मिटी 

मैं अपनी  पहचान ढूंढने लगी ।


रविवार, 20 अप्रैल 2025

अंतिम समय में तानाशाह

 


 

अपने अंतिम समय में तानाशाह मार दिया जाता है

 

या

 

अकेला रह जाता है

 

अपने मन और तन के बोझ के साथ ।

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

वह निकम्मी नहीं है

  


 

 

 

वह होश सम्हालते ही भाई को गोद में लेने लगी

 

माँ खाना बनाती थी

 

जब बड़ी हुई तो वह खाना बनाने लगी

 

ब्याह हुआ

 

तो ससुराल में खाना बनाने लगी

 

बेटा बड़ा हुआ

 

तो बेटे के घर में खाना बनाने लगी

 

और

 

वह खुश है

 

वह निकम्मी नहीं है




रविवार, 13 अप्रैल 2025

बहन की तेरही

  

 

 

यूँ ही नहीं कहानियाँ नहीं है कही जातीं हैं कहानी

 

कंस मामा की

 

आज भी है  कंस मामा

 

छूने नहीं देता बहन के परिवार को पैतृक संपत्ति

 

कुटिल हो कहता है

 

नहीं मिलती बेटी को संपत्ति

 

समाज के आँख पर पट्टी बँधी है

 

तृप्त होता है आज भी कंस मामा

 

बहन के मौत पर

 

तेरही पर भी नहीं जाता

 

अच्छा हुआ हक़दार ने आँखें मूँदी

 

 


शनिवार, 5 अप्रैल 2025

हक़ के संग रिश्ते ख़त्म

  

 


 

 

पैतृक संपत्ति ने बांध के रखा था

 

भाई बहन को

 

मकान की मरम्मत जरूरी थी

 

बहन ने हक त्यागा

 

उसे एक साड़ी और मिठाई मिली लौटते वक्त

 

उम्र बढ़ गई थी बहन की

 

साड़ी बाँधना मुश्किल था

 

डाइबिटीज से पीड़ित बहन ने अपनी मिठाई और साड़ी कामवाली को दे दी

 

हक खत्म हुआ

 

रिश्ते बिखर गये