ड्राइंग रूम और पार्टियों के मुद्दे होते महिला दिवस
फिर
अपने घर में सो जाती हैं ...... बिला जाती हैं आम औरतें ...........
घर में
पिता को नहीं भाती समानता अपने बेटे से
अपनी ही बेटी की
माता को न महसूसता दर्द अपनी बेटी का
तो कैसा महिला दिवस
और
कैसा मान महिला का ........
अरे !
अपाहिज बना दिया है तुमने बेटी को आरक्षण दे के .......
तुमने उसे महसूस कराया है ........ विश्वास दिलाया है
कि
वह दुर्बल है .......
वर्ना
वह भी खूब समझती है दुर्बलता पुरुषों की
जो राज करता है
औरत की दया ... करुणा के बल पे ......
और
शोषण करता है
अपनी निकटस्थ कमजोर स्त्री संबंधी का ।
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