रविवार, 11 मई 2025

मुक्ति


 

 

 

अकेलापन और असहायता साथी होते हैं जीवन संध्या में

 

हाथ में रुपया नहीं

 

रहने को घर नहीं

 

इंतजार करूं मैं

 

बुलावा का

 

मुक्ति का

 

दिल भर गया

 

दुनियां से ।

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें