यूँ ही नहीं कहानियाँ नहीं है कही जातीं हैं कहानी
कंस मामा की
आज भी है कंस मामा
छूने नहीं देता बहन के परिवार को पैतृक संपत्ति
कुटिल हो कहता है
नहीं मिलती बेटी को संपत्ति
समाज के आँख पर पट्टी बँधी है
तृप्त होता है आज भी कंस मामा
बहन के मौत पर
तेरही पर भी नहीं जाता
अच्छा हुआ हक़दार ने आँखें मूँदी ।
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