सोमवार, 30 सितंबर 2024

स्कूली बच्चा



#इन्दु_बाला_सिंह


बलि दी गयी


गाँव के  स्कूल में पढ़नेवाले  छः वर्षीय बच्चे की 


अख़बार में छपी थी खबर 


बलि थी 


या 


कुछ और था 


न जाने क्या था 


ग़रीबी अभिशाप थी शायद 


आज भी बच्चे के खून से हाथ रेंगनेवाला 


न जाने कैसा हैवान है 


न जाने किस समाज का विकार है ।



शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

भूख


#इन्दु_बाला_सिंह


शारीरिक हो या मानसिक 


या 


हो पेट की 


भूख कुत्ता ही है 


उसे थोड़ा रोटी का टुकड़ा दे  देना 


वरना 


वह सत्ता हिला देगी 


आसपास की जगह तहस नहस कर देगी ।



पेंशन



#इन्दु_बाला_सिंह


वह 


बकइयाँ खींचते हुये 


पोस्ट ऑफिस पहुँची थी पेंशन लेने के लिये 


न जाने किसने उसकी तस्वीर ले ली 


और 


अब वह मीडिया पर दिखने लगी 


गाँव में


उसे लोग बदनाम करने लगे 


बुढ़िया लालची है 


बेटा मज़दूरी करता है शहर में 


उसको खाने की कमी है 


अरे ! 


वो अपनी बिटिया को देने के लिये पेंशन लेती है .……


अभी तो 


कुछ माह बाद  उसे 


अपना  जीवित होने का प्रमाण पत्र लेने के लिये 


पोस्ट ऑफिस जाना था 


परेशान थी 


वह अपंग ।



27/09/24

गुरुवार, 26 सितंबर 2024

उस दिन

 


#इन्दु_बाला_सिंह


बातें कर रहे थे 


वे 


राम का वनवास का काव्य है  बंदे मातरम् 


और 


मैंने कहा था 


सीता के वनवास का काव्य है बंदे मातरम् 


सब चुप रह गये थे 


न जाने क्यूँ ।



काम हो गया था



#इन्दु_बाला_सिंह 


एक दिन 


पूछा मैंने 


उस होम मेकर से - 


संविधान के बारे में सुना है ...


वह मूर्खों की तरह मेरा मुंह देखने लगी


हां...


पंद्रह साल पहले सुना था यह शब्द स्कूल डेज में 


पर अब सोचती हूं 


हाथ से लिख कर लटका लूं 


अपनी दीवाल पर कैलेंडर की तरह 


कुछ तो याद रहेगा ....


मेरा काम हो गया था 


मैं  हट गई उसके पास से ।



अकेलापन

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पूछा मैंने जगदम्बे से -


तुम मेरी दोस्त बनोगी 


वह हंस कर बोली -


मैं तो संसार से दूर ऊँचे पहाड़ की वासी 


सबकी माँ हूँ


कैसे बनूँ तुम्हारी दोस्त .…


मैंने भी जिद पकड़ी-


तुम बन सकती हो मेरी दोस्त 


तुम आ सकती हो मेरी दोस्त बनकर ……


और मेरी नींद खुल गयी 


मैं हैरत में थी 


अपने सुबह के स्वप्न पर ।



बुधवार, 25 सितंबर 2024

जल रही है मशाल





#इन्दु_बाला_सिंह


भक्क से जल उठी थी चिंगारी 


सात वर्ष की ही उम्र में 


जिस पल मेरी माँ को कहा था 


मेरी ताई ने -


तुम्हारे तो केवल बेटी ही है 


मेरे बेटे को अपना बेटा समझो ……


माँ चुप रही 


दुःखी भी ज़रूर हुई थी होगी वह 


उसके भाई के खानदान में एक भी बेटा न था 


समय के साथ मन के झाड़ में लगी चिंगारी मशाल बन गयी 


और 


आज जीवन के उत्तरार्ध काल  में भी 


जल रही वही मशाल ।



लायक़ बेटा





#इन्दु_बाला_सिंह


दुपहरिया से बादल दुःखी है आंसू बरसा रहा है 


न जाने क्यूँ 


पार्क में पैदल चलने का मौसम नहीं है 


पर 


इंसान मौसम से भी लोहा ले लेता है 


पार्क के मैदान कुछ औरतें ख़ाना बना रहीं हैं 


कुछ मर्द उनके लिए प्लास्टिक की चादर बांध रहे हैं 


चूल्हा सुगमता से जलना है 


ख़ाना भी तो बनाना है 


ज्युतिया के लिये प्रसाद बन रहा है 


बेटे की सलामती का पूजन है 


बेटा सलामत है 


तो 


पति खुश है 


पति खुश है तो घर है 


औरतों पर देवी देवता पूजन का भार टीका है 


ज्युतिया के दिन बेटियों के दिल में क्या है 


बिन बेटों की माँ के  दिल में क्या है 


यह क्यूँ सोंचा जाय


बेटा विदेश बस जाये 


तो 


पूजन व्यर्थ गया 


माँ - बाप के अंतिम पल में 


गंगा जल नौकर डाले 


यही सत्य है 


लायक बेटे का ।



सोमवार, 23 सितंबर 2024

अतीत देखते हुये





#इन्दु_बाला_सिंह 


अतीत को पढ़ कर ही हम गढ़ते हैं भविष्य 


और 


रचते हैं अपना वर्तमान


अपना सुघड़ समाज 


आज हम लौट रहे हैं पूर्वजों की सभ्यता को समझने 


हमारी माया सभ्यता का सूर्य ग्रहण का गणन 


हमें अचंभे में डाल देता है 


जीवन संध्या हमें याद दिलाती है 


हमारे अतीत की ......


अतीत से भागती नयी पौध 


जड़ों से दूर 


नकली सूर्य की चकाचौंध से सम्मोहित हो 


भागती ही रह जाती है


वर्तमान उसका उसे एक दिन थका ही देता है


केवल पैसा


और 


अपने जीवन का अफसोस ही रहता है 


उसकी मुट्ठी में 


अपनी आनेवाली पीढ़ी को थमाने के लिये ।



अख़बार भी न बोला




#इन्दु_बाला_सिंह


बच्ची स्कूल नहीं पहुँची 


स्कूल में शिक्षक मौन थे 


प्रिंसिपल मौन थे 


बच्चे आपस में एक दूसरे से बतिया रहे थे 


उस बच्ची को क्या हुआ था पता नहीं किसीको


माँ ने कह दिया रिक्शावाले से -


कल से मत आना बच्ची को लेने … वो अब नहीं है ……


खबर फैली पर 


किसी की ज़ुबान पर न आयी 


अख़बार भी न बोला ।



रविवार, 22 सितंबर 2024

?

घरेलु व्यवस्था



#इन्दु_बाला_सिंह


सौंप देते हैं अपने सपने 


कुछ पिता 


अपनी बेटी को …


बेटी  शक्ति और बुद्धि के शौर्य से चमक उठती है 


वह समाज में प्रतिष्ठा पाती है 


फिर भी


 घरों में दोयम दर्जा मिलता है उसी बेटी को 


आख़िर क्यों ?


जिस दिन चेतेंगी लड़कियाँ 


उसी दिन से 


घरेलू व्यवस्था का चरमराना शुरू हो जायेगा।




04/08/24

ठंडी उदास हवा



#इन्दु_बाला_सिंह


 ब्याह के बाद 


धीरे सीख रही है  युवती  


दूसरे घर का चाल ढाल 


और


भुला रही है अपने बचपन के गुण 


जीने के लिये 


वह दूसरे  के साँचे में ढल रही है 


युवती की प्रतिभा को मान न मिला 


दोनों परिवार एक दूसरे से कुछ न सीखे 


लड़की अपने शौक़ खो रही है 


दरवाज़े ख़ामोश हैं 


नया जीव जन्म ले रहा है 


धीरे धीरे 


नयी पौध कुम्हला रही है 


उदास धूप में 


ठंडी हवाओं में ।




04/08/24

दान



#इन्दु_बाला_सिंह


वे आतुर थे 


दान देने के लिये 


उन्हें अपना भविष्य सुधारना था 


और 


मुझे दान ले कर 


दीन हीन न बनना था ।




03/08/24

मकान



#इन्दु_बाला_सिंह


मुझे माँ के  मकान की ज़रूरत थी 


और 


माँ को मेरी 


माँ की आँख बंद होते ही 


वक्त पलटा 


सबकी गिद्ध दृष्टि मकान पर लग गयी


दरवाज़े , दीवार निरीह से ताकते रहे   ।




02/08/24

दरवाज़ा बंद है ।



#इन्दु_बाला_सिंह


साँकल न खटखटाना 


दिल का दरवाज़ा बंद कर दिया है मैंने 


संबंधों के दरबाजे खुले हैं 


बेखटके अंदर आ जाना .……


दुश्मनी के दरवाज़े पर ताला मार दिया है मैंने 


और 


चाभी समंदर में फेंक दी है ।



पितृहीन लड़की



#इन्दु_बाला_सिंह


अपना भविष्य ख़ुद बनाओ 


कहा था मैंने 


एक पितृहीन बिटिया को 


उसने किसी से कुछ न सीखा 


उच्च शिक्षित हो अपने पैरों पर खड़ा होना न चाहा 


आर्थिक स्वांबलबिता का महत्व न समझा 


उसने अपने लिये दूल्हा तलाशा 


और 


होम मेकर बन गयी ।



ख़ाना - घर से दूर



#इन्दु_बाला_सिंह


बिहारी मज़दूर काम से लौट के 


हीटर पर 


उबालते हैं आलू चोखा बनाने के लिये 


और 


बेलते हैं रोटी


खा के रोटी चोखा 


सो जाते हैं वे लंबी तान के ……


पर पढ़े लिखे बिहारी नौजवान को न भाता 


आलू उबालना 


रोटी बेलना 


वे होटल से ख़ाना मंगा कर खाते हैं ।



पार्क में जुगाली

 


#इन्दु_बाला_सिंह


रिमझिम पड़ रही हैं फुहारें 


पार्क में बैठी हूँ 


बच्चे घर में बंद हैं 


आवारा कुत्ते घूम रहे हैं 


वे आज आज़ाद हैं 


वे ही कर रहे हैं मेरा मनोरंजन 


सूने घर और उसकी परेशान दीवारों से ऊबी मैं 


पार्क के एक छाँव में 


हूँ बैठी .…


कुत्ते मेरे बग़ल से गुजर जाते हैं 


भौंकते नहीं मुझ पर 


शायद वे मुझे पहचानते हैं


किसी कैविटी  में वे अपनी पहचान डाल देते हैं 


नीचे तल्ले की रसोई सूंघते 


वे गुजर जाते हैं 


बेकार इंसान  भी इसी तरह विभिन्न घर की  रसोइयों की ख़ुशबू लेते गुजरता 


तो 


वो क्या सोचता …


मैं 


सोंच नहीं पाती हूँ ……


बरसात न हो तो छोटे बच्चे दिख जाते हैं 


पार्क के बालू में 


घरौंदे बनाते 


एक दूसरे को दौड़ाते


कुछ समझदार बच्चे 


मुझसे समय का ज्ञान पाने के लिये 


पूछ लेते हैं मुझसे 


मेरी घड़ी का टाइम ….…


छोटे बच्चे न रहें 


कुत्ते न रहें 


तो पार्क उदास हो जाता है 


दिमाग़ में  


जुगाली करने को मुझे 


पार्क में 


मुद्दा नहीं मिलता  है ।



गर्मी





#इन्दु_बाला_सिंह


बह गया आँखों से जो 


वो जज्बात कैसा 


गिर गया आँखों से 


वो इंसान कैसा 


बाक़ी सब तो 


कुछ पल का समझौता है 


पानी का बुलबुला है इंसान 


फिर अहंकार कैसा 


वह गर्मी कैसी 


जो न तो अपने काम आयी और न ही किसी ज़रूरतमंद के ।


#indubalasingh #hindipoetry

असुविधापूर्ण जीवन जीते लोगों के लिये



#इन्दु_बाला_सिंह


हम तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर तुम्हारी भाषा में देते हैं 


तुम ख़ुश हो जाते हो 


तुम्हारा मन नहीं किया 


मेरी ही तरह मेरी भाषा सीखने का !


हम तो तुम्हारा ज्ञान प्राप्त कर आगे बढ़ जाते हैं 


तुम अपनी भाषा के मद में डूबे जहां के तहाँ रह जाते हो 


हम तुम्हें बदलते नहीं हैं 


तुमसे तुम्हारी  अच्छाइयाँ ग्रहण करते हैं 


ख़ुद की ग़लतियों का शोधन करते हैं ….…


हम आगे बढ़ते जाते हैं 


तुम अपने संस्कार के नाम पर आगे बढ़ना ही नहीं चाहते 


जल , जंगल ज़मीन हमें भी प्यारी है 


तभी तो हम संरक्षित करते हैं बनों को 


नदियों को साफ़ रखने की कोशिश करते हैं


गाँवों को बिजली और इंटरनेट से जोड़ते हैं 


वर्क फ्रॉम होम का कल कल्चर बढ़ा रहे हैं 


हम तुम्हारा शोषण नहीं कर रहे हैं ।



कन्यादान



#इन्दु_बाला_सिंह


हँसी ख़ुशी दान हो जाती हैं लड़कियाँ 


 कम पढ़ी लिखी हो या उच्च शिक्षा प्राप्त हो 


एक खूबसूरत नये संसार की कल्पना लिये 


परंपरा के नाम पर ……


काश वे सोंच पातीं 


वे वस्तु नहीं हैं जिन्हें दान किया जा रहा है ।



लंबी आयु का दुःख





#इन्दु_बाला_सिंह


एक कोने में पड़ी अकेली बूढ़ी औरत शादी के गीत गाती है 


अपनी युवावस्था के विवाह रस्मों को याद करती है 


फिर 


विव्ह्वल हो  पुकार उठती है 


ओ माँ !


बेटे आ कर देख जाते हैं माँ को 


लोक लाज के चलते 


यह वही औरत है 


जिसने  अपनी जवानी में बेटे बेटी के दुःख दूर किये 


आज पड़ी है वह 


बिस्तर पर 


कभी बाथरूम में गिर जाती है 


तो कोई उसे उठा देता है आ कर 


बुढ़ौती रिश्तों की 


महक ढूँढती है 


सहारा ढूँढती है 


प्यार ढूँढती है 


सम्मान ढूढ़ती है ……


आख़िर इतनी आयु क्यों जीता है इंसान ?



कृतियों का जन्म





#इन्दु_बाला_सिंह


इंसान में 


विचार और भावनायें एक साथ चलते रहते हैं 


कभी कभी भावनाओं का वेग तीव्र हो जाता है 


पहाड़ फोड़ कर निकल पड़तीं है शब्दों के झरने सरीखी 


कविता का जन्म होता है  


स्थिर भावनायें रिसतीं रहतीं  हैं 


शब्दों का जलकुंड बनता है उपन्यास का जन्म होता है 


भावनाओं के हल्के फुलके शाब्दिक उफान कथा कहानी के रूप ले 


बस जाते हैं ……


सोंच विचार कर किया गया भावनायुक्त 


परीक्षण वैज्ञानिक लेख …विश्लेषण राजनीतिक लेख के रूप में जन्म लेता है ।



मनहूस है फ्लैट





#इन्दु_बाला_सिंह 


न तो सूर्योदय दिखे


न सूर्यास्त 


चिड़िया कौओं के भी दर्शन न हों


बस दीवाल हैं


और 


है इंटरनेट 


अकेलेपन का विस्तार है 


मनहुसियत की शरण स्थली है फ्लैट।



पिता खो गये





#इन्दु_बाला_सिंह


ग़र पिता बेटी के मित्र होते


 तो 


कहानी कुछ और होती 


अपनी सारी शक्ति और वैभव दान न करते 


वे 


अपने पुत्र को 


और 


बेटी को सदा दान किया हुआ पात्र न समझते 


कहानी वही है 


चेहरे नये हैं ।



मकान के छूटने पर



 


#इन्दु_बाला_सिंह


मकान में 


वह आख़िरी रात थी हमारी


हमारे घर की 


और 


हम अपने अपने दुःख को छिपाते हुये 


एक दूसरे की ओर पीठ कर के


टूटना नहीं है 


इस भाव के साथ ज़मीन पर सोये रहे 


मन कह रहा था 


यह आख़िरी रात है 


घर की 


नींद खुली तो 


नया दिन था 


नया सूरज था 


नया निर्णय था 


हम अपने अपने रास्ते की ओर  बढ़ चले ……


हम 


मिलते रहे 


बिछड़ते रहे 


बहुत कुछ छूट गया .……


मेरा पूर्वाभास सच हुआ 


समय जीवित रहने के लिये बदलाव  माँगता है 


और 


हम बदलते रहे 


जीवित रहे ।



शनिवार, 21 सितंबर 2024

ग्लोबल इंसान

#इन्दु_बाला_सिंह


अब ग्लोबल बनने की ओर चले 


छूटा कब  पता नहीं अपना गाँव 


और अपने लोग बिसर गये 


जड़ से कट कर हम आज कितने अकेले हो रहे 


उबर , स्विग्गी, बिगबास्केट , एलेक्सा हमारे मित्र हैं 


नदियों से हम मुँह मोड़ चले 


क्रेच और  वृद्धाश्रम के सहारे हम आगे बढ़े 


अपने जन्मदाता की छाँव  छोड़


धर्म की छाँव में सुस्ताने लगे अब हम ।



शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

पंडिता बनूँगी




#इन्दु_बाला_सिंह


अग्नि परीक्षा न दूँ


आँख पर पट्टी न बांधूँ


मैं तो बनूँगी 


पंडिता रमा बाई ……


शक्ति हूँ 


बदलूँगी निकटस्थों के भाग्य ।



सोमवार, 16 सितंबर 2024

सूर्य जगा

- इन्दु बाला सिंह 


सबने अलग अलग घर बसा लिया 


शून्य मूल्यहीन था 


वह भटकता रहा भूखा प्यासा 


एक दिन दौड़े आये उसके भाई बहन 


पहले एक पहुँचा 


बैठ गया शून्य के बाँये 


फिर एक एक कर के आते गये 


तीन , चार ,पाँच छः , सात , आठ , नौ बैठते गये शून्य के बाँये 


आश्चर्य चकित हुआ वह 


अब सब भाई बहन गोल गोल घूमने लगे शून्य के 


थोड़ी देर बाद शून्य खिलखिला दिया 


धूप निकल आयी 


सौर मंडल बन गया 


सूर्य खिलखिलाया ।




*    शिक्षक दिवस के अवसर पर ।

सत्य



दीवारें और तुलसी का चौरा गवाही न दे दें 


इस भय से 


टिकठी 


सम्मान पूर्वक उठी  


दीवार और तुलसी का चौरा देखते रह गये 


तेरह दिन की ही तो बात थी ……


 फिर दीवारें रंग दी गयीं 


अलमारी पर नया पेंट चढ़ गया 


तुलसी को दिन में 


ख़्याल से पानी दिया जाने लगा 


और 


रात को दीया  जलने लगा 


दिन में सूरज  किरणे सब कुछ देख रही थीं 


सब कुछ देख रहीं थीं चन्द्र किरणें भी 


हवाओं को खबर मिल रही थी 


प्रकृति समझ रही थी ……


कभी न कभी स्वार्थ की गगरी फूट ही जायेगी ।



गुरु दक्षिणा


-इन्दु बाला सिंह 


भोले बच्चे 

गुरु में  तुम्हें अपना शिष्य बनाने का मनोबल न हो 

तो 

न बनाना उसे अपना मानसिक गुरु 

वरना 

गुरुदक्षिणा में 

अंगूठा की माँग होगी  ।



लड़की और सुरक्षा

#part_2_poem

- इन्दु बाला सिंह 



उस लड़की के 


सारे रिश्ते 


ख़ुद को उसके संकटमोचक समझते थे .……

और 

उसके 


हित मित्र भी 


सुरक्षा देना चाहते थे उसे ……


उस उच्पदस्थ लड़की को समाज में 


इज्जत प्राप्त थी


ऑफिस के कर्मचारी 


उसके आदेश का इंतज़ार करते थे 


वह स्वयं सुरक्षा देना चाहती थी 


अपने निकटस्थों को 


अपनों को .…


वह 


एक फलदार वृक्ष बनना चाहती थी 


जिसमें 


दूरस्थ असहाय पंछी घोंसला बनायें……


बाड़े में रहना 


उसे पसंद न था  ।



घर में पुरुष



#इन्दु_बाला_सिंह


शरत बो ने आत्महत्या कर ली है 


खबर उड़ी 


और 


दब गयी 


शरत के चार बेटों में से एक का ही परिवार चला 


बाक़ी तीन अकेले रहे 


छोटा मोटा काम करते रहे 


माँ के प्यार को तरसते रहे 


और 


वे भी गुजर गये 


कैसा पिता या पति था होगा वह पुरुष 


मैं आज भी सोंचती हूँ ।



एलेक्सा

- इन्दु बाला सिंह 


उसने कहा 


धीरे बोलो पड़ोसी सुन लेगा 


मैं बोल पड़ी 


ऐलेक्सा से 

तुम बतियाते दिन भर 


वो नहीं सुन लेगी 


अपना नाम सुन 


एलेक्सा बोल पड़ी - 


 ‘ कैन यू से अगेन , आई डिडंट अंडरस्टैंड ‘ ।