हम
जब प्रार्थना करते हैं
अपने मित्र से
मुक्त करने को
कहते हैं
अपने स्नेह
बंधन से उसे
तब हमारी
कमजोरी बोलती है
तोड़ने को वह
अटूट प्रिय बंधन
यह वह सम्बन्ध
रहता है जिसे हम चाह कर भी निभा नहीं पाते
और उस वक्त
इतना स्नेह में डूबे रहते हैं हम उसके
कि खुद तोड़ ही
नहीं पाते वह बंधन
मोह पाश में
तड़पते रहते हैं
हर क्षण पल पल
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