ए. सी . ट्रेन
के डिब्बे में
फर्श पर बिखरे
खाकी रंग के पैकेट
बांटते हैं
आपस में अपना सुख दुःख
रोते हैं अपना
दुखड़ा
पैरों से
कुचले जाने पर टूटते हैं
बिसूरते हैं
फिर सोंचने
लगते हैं
काश वे भी
नोटबुक होते
कोई छात्र
उन्हें प्यार से रखता
सहेजता अपने
बैग में |
तभी एक पैकेट
खुश हो गया
जब उसने देखा
कि एक युवा ने उसे उठा लिया है
जमीन से
और
खुशबूदार डाट पेन से लिखता जा रहा है
अपने संस्मरण
और वह लिफाफा
अब गमकता जा रहा है |
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