बचपन में
उसका एक कमरा
था
बस
वही था उसका स्वप्निल सुरक्षित दुनियां
पर जब वह बड़ा
हुआ
निज पांव पे
खड़ा हुआ
तब देख आकाश
उत्सुक हुआ
उफ्फ
!
ये
लो देखो !
वक्त ने
लगाया
पांव में
उसके पहिया
पूरी दुनिया
बनी
अब उसका
घर
और वह ज्ञान
बटोरने लगा
बाँटने भी
लगा जिज्ञासु को निज अनुभव
पर
ज्ञान पिपासा उसकी थी कि बढ़ती ही रही
आज न जाने
क्यों
मना रहा वह
निज व्याकुल मन को
बांधना
चाहता वो उसे एक ठांव |
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