शनिवार, 27 जुलाई 2013

ज्ञान पिपासा

बचपन में
उसका एक कमरा था
बस वही था उसका स्वप्निल सुरक्षित दुनियां
पर जब वह बड़ा हुआ
निज पांव पे खड़ा हुआ
तब देख आकाश उत्सुक हुआ
उफ्फ !
ये लो देखो !
वक्त ने लगाया
पांव में उसके पहिया
पूरी दुनिया बनी
अब उसका घर 
और वह ज्ञान बटोरने लगा
बाँटने भी लगा जिज्ञासु को निज अनुभव
पर ज्ञान पिपासा उसकी थी कि  बढ़ती ही रही
आज न जाने क्यों
मना रहा वह निज व्याकुल मन को
बांधना चाहता  वो उसे एक ठांव |

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