- इंदु बाला सिंह
मेट्रो की जगमगाती रोशनी
गगनचुंबी इमारतें
फ़्लैटों में पलती ज़िन्दगियाँ
खिलखिलाहटें
उच्च अभिलाशायें
महंगाई की मार
शिक्षा , फ़्लैट के लिया क़र्ज़
रोज़मर्रा की भागमभाग
दूर करती है अपनों से ........
छोटे शहर और गाँव बसाए रहते हैं अपने मन में
पति के लौटने के स्वप्न
पिता का इन्तज़ार
राखी के दिन बहन की चाह
पनियारी आँखोंवाले पिता
स्वप्निल माँ ......
चलो हम पुल बनाएँ
गाँव, छोटे शहर और मेट्रो को ही नहीं विदेश को भी जोड़ें......
टआख़िर कभी तो सपने सच होंगे ।
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