बुधवार, 31 जुलाई 2013

किसी का भला किया था !

कभी कभी न जाने क्यूँ
लगता है कुछ ऐसा
मानो कोई अनजानी शक्ति
आ कर हमारा रास्ता उस समय सुगम कर जाती है
जब हम बिलबिला कर हार चुके होते हैं
और आगे चलने की असमर्थता पर अफ़सोस कर रहे होते हैं 
ऐसा लगता है मानों हमारे सामने सघन जंगल है .....
अब हम आगे कैसे चलें  ?
कुछ समय बाद एकाएक  हमारा रुका काम स्वतः बन जाता है
तब न जाने क्यूँ अद्भुत अचम्भा सा महसूस होता है
मन में एक छोटी सी  भावना  पैदा होती है ...
जरूर कभी किसी का भला किया था  होगा मैंने |

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

सर्वोपरि है तू

पति ही सर्वोपरि
पिता माता ने ही मुंह मोड़ा तो
क्यों दोष दूं दूजे को
पति सुशील तो नाम पति का
पति अवगुणी तो
बहुत लोग उसके पक्ष में
पत्नी तो मात्र जननी है
सहायिका है
वह औरत जो नहीं है पत्नी किसी की
या विधवा है
वह कौन है ?
मैंने बहुत सोंचा
पर कोई उत्तर न मिला मुझे
आज भी सोंच में हूं मैं
वैसे मुंह देखी बोलने वाले बहुत हैं |

नैतिकता

नैतिकता भटक रही
पहाड़ों में
घाटियों में
कोई नहीं रखता उसे अब
अपने घर में
एक दिन एक बालक ने कहा उससे
जब मैं बड़ा होऊंगा
अपना घर  बनाऊंगा
तब रखूंगा उसमें तुझे
ओ मेरी प्यारी दोस्त
नैतिकता मुस्करा कर
बालक के सर पर हाथ फेर कर
आगे बढ़ चली |

सोमवार, 29 जुलाई 2013

सीखें हम

तेज आंधी हमें समझाती है
घास सा सो जाना
तने रहे जो
वृक्ष सा अकड़े रहे जो
धराशायी हुए वे
सुनामी समझाती है हमें
हाथियों सा सूंघना
भाग कर सुरक्षित ऊँचे स्थल पर चढ़ जाना
आज हम सोंचें समझें
एक पल रुकें
मान ही लें
इन प्राकृतिक आपदाओं को गुरु
समस्याओं के धक्के से हम घबराएं न
कुछ दूर बाएं मुड़ें और चलें
भीड़ तो गुजर ही जायेगी
पुनः आगे दौड़ पड़ें
पूरे जोश से
होश से |

मोह पाश

हम  जब प्रार्थना करते हैं
अपने मित्र से
मुक्त करने को कहते हैं
अपने स्नेह बंधन से उसे 
तब हमारी कमजोरी बोलती है
तोड़ने को वह अटूट प्रिय बंधन
यह वह सम्बन्ध रहता है जिसे हम चाह कर भी निभा नहीं पाते
और उस वक्त इतना स्नेह में डूबे रहते हैं हम उसके
कि खुद तोड़ ही नहीं पाते वह बंधन
मोह पाश में तड़पते रहते हैं
हर क्षण पल पल |

मेरा घर

बड़ा भला लगता है
मुझे अपना दो कमरे का घर
बारिश के मौसम में
इतवार भाये
हम गरम पकौड़ी खाएं
खिचड़ी खाएं
खिड़की से वर्षा का बिन भीजे आनंद लें
बादल गरजे बिजली चमके
या बिजलीवाले मामूं करेंट काटें
हम तो बच्चों संग इन्ताक्षरी खेलें
बाकी दिन आफिस से लौटने पर
कितना सकून देता मुझे मेरा सूखा कमरा
गर्माहट देता मुझको
मेरे घर की दीवारों में बसती मेरी रूह
खाली समय में
बातें करता मुझसे मेरा घर 
मेरा परम मित्र है मेरा घर |

शनिवार, 27 जुलाई 2013

बेटी हूँ तो क्या हुआ !

पहुंचा के यहां
गुमे तुम कहां
ओ पिता !
कुछ पल दिखे
फिर गायब हुए
तुम्हारी उपस्थिति
हर पल महसूस होती
मुझे न भाये ये जहां
मैं चली बनाने निज मुकाम
निज सुख दुःख की साथी केवल मैं
तेरे संस्कार को छननी से छान लिया मैंने
मूल तत्व गहि लिया आज
मैं न रुकूं आज
ये लो चल पड़ी मैं आज
तुम्हारा बेटा न सही पर तुम्हारा प्रतिरूप हूँ मैं
तुम्हारी अतृप्त अभिलाषाएं मैं  करूंगी पूरी
तुम्हारी कमजोरी को आज मैं सबलता बनाने चल पड़ी |

ज्ञान पिपासा

बचपन में
उसका एक कमरा था
बस वही था उसका स्वप्निल सुरक्षित दुनियां
पर जब वह बड़ा हुआ
निज पांव पे खड़ा हुआ
तब देख आकाश उत्सुक हुआ
उफ्फ !
ये लो देखो !
वक्त ने लगाया
पांव में उसके पहिया
पूरी दुनिया बनी
अब उसका घर 
और वह ज्ञान बटोरने लगा
बाँटने भी लगा जिज्ञासु को निज अनुभव
पर ज्ञान पिपासा उसकी थी कि  बढ़ती ही रही
आज न जाने क्यों
मना रहा वह निज व्याकुल मन को
बांधना चाहता  वो उसे एक ठांव |

बुधवार, 24 जुलाई 2013

अद्भुत रचना

पास जो आता है तेरे
अचंभित रह जाता है वह
ये कैसा अद्भुत इतिहास रचता है तू
चाह कर भी तुझ जैसा नहीं बन पाता है कोई निकटस्थ
ये कैसा करिश्मा है
तेरे वजूद का
पर
जहां भी रहे तू
तेरा मन सदा खुश रहे
यही मंगलकामना आज तेरी जन्मदाता करे |

सच्चाई

समय की आंच में पकाई
मैंने सच्चाई
चतुराई का नमक उसमें डाली
बनाई खिचड़ी
खा के देख तो जरा
प्यारे !
हजम हो जायेगी तुझे यह
और तेरा चेहरा दमक उठेगा
सत्य के ओज से |

मौन मन

घबराया मन
जब चंचल हिरन सा इत उत धाता है
तब किसीके बांधे नहीं बंधता है
यह घुड़दौड़ बस यूँ ही चलती रहती है निरुद्देश्य
कुछ समय बाद दिमाग थकने लगता है
धीरे धीरे मन का कोई कोना भी मौन होने लगता है |

सोमवार, 22 जुलाई 2013

बददुआ

आज सुबह ही याद आयी तेरी
ओ सहोदर !
तेरी बदतमीजी और दुर्व्यवहार भी याद आया
पर बददुआ न निकल पायी आत्मा से
कहते हैं
भोर और संध्या माता कर देती हैं सच
हमारी प्रार्थना |

विचारणीय मुद्दा

अमीर सैर करते हैं भोजन पचाने को ...
कहने वाले लोग चल पड़े
लगे अब खुद सैर करने
अजूबा देख मन हैरत में है डूबा
क्या कहें इस विचार धारा को
यह एक नया विचारणीय मुद्दा है |

समझौता

समझौता ही जीवन है
कठिन होता है
समझौता करना भी जब
अपने मित्र से
तब लगता है ढूंढने मनुष्य
एक नया मित्र
और
गंभीर आत्म मंथन के बाद
लेता है निर्णय
पुरानी गलतियां न दुहराने का | 

सीज किया हुआ मोबाइल

विगत एक सप्ताह से
हर रोज कनेक्ट होता था
पर बोलता नहीं था मोबाइल का नेट
एक दिन जब नेट भी कनेक्ट  नहीं हुआ
तो चिंता हुयी  मुझे मोबाइल धारक की
अबकी मैंने काल लगायी
उत्तर आया ....
स्विच आफ है ...|
चिंता हुयी मोबाइल धारक की मुझे तो
अबकी मोबाइल धारक के मित्र को काल लगाया मैंने
पता चला
एक सप्ताह से कालेज बिल्डिंग  में मोबाइल हाथ में देखा था
कालेज के कर्मियों ने
इस लिए सीज हो गया है वह मोबाइल
कालेज बिल्डिंग में मोबाइल अलाउड नहीं था
मुझे अपने एप्पल के मोबाइल के सीज होने का
अब अफ़सोस था
और मोबाइल धारक के दुख से भी मैं दुखी थी |

सुखाये न सूखी

कविता तो श्रम की बूँदें हैं
मेरे जीवन की
टपक गयी जो कागज पर ऐसी
वक्त सुखा सुखा हारा
हैरत से देख रही मै
आज निज कोरे मन को |

लडकियों का आरक्षण

आरक्षण का दुरूपयोग  कर रही हैं
आज लडकियां
अपनी पढायी और नौकरी से सुधार रही हैं
वे अपने घर का स्तर
उनकी आँखों पर वर्षों पुरानी बंधी पट्टी
आज भी नहीं खुली है
वे खुद परिवार की मुखिया बन
परिवार चलाने की बात सोंच ही नहीं पाती
आज अमीर हर सरकारी योजना का फायदा उठा पा रहा है
अपने तरीके से
लडकियां परिवार की मशीन की तेल बन गयी हैं
उनकी उपस्थिति मात्र एक जरूरत है |

छात्र

सुन !
दो पल मुझे
ऐसी शिक्षा ग्रहण कर तू
कि तुझसे फूटे शंखनाद
अधिकार और कर्तव्य का
एक दिन
दिशा ज्ञान तुझसे ही पायेगा
आज का यह  दिग्भ्रमित समाज |

हईया हो ! हईया !

जोर लगा भईया !
सांस न ले
दे दे ! धक्का जोर का !
पूरी ताकत लगा रे भईया !
हईया हो ! हईया !
पल भर में पार कर जायेगी
गरीबी रेखा को गड्डी तेरी
दम लगा मेरे भईया !

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

बहादुर बेटी

प्यासी तलवार थी लाल हुयी 
कोई इधर गिरा कोई उधर गिरा
बेटी ने था मान रखा
अपनी झांसी का
बेटी की यह अमर कहानी
है याद आज
हर छात्र को जुबानी |

जख्मों के दाग

जख्म आभूषण हैं
शूरवीर के |
वह मुआवजा नहीं मांगता किसी से
अपने जख्मों का |
दाग सदा याद दिलाते हैं उसे
अपने शौर्य का |

रुपया गूंगा नहीं होता

रूपये पर
नाम नहीं लिखा होता
ग्राम भी नहीं लिखा होता
केवल  लिखा होता है उसका मूल्य
पर वह चलता रहता है हरदम हमारे साथ
कभी कभी फुसफुसाता भी है वह हमारे कान में
जो समझ लेता है उसकी भाषा
वो तो बस  बन ही जाता है इन्सान |

लिफाफे ए . सी ट्रेन के

ए. सी . ट्रेन के डिब्बे में
फर्श पर बिखरे खाकी रंग के पैकेट
बांटते हैं आपस में अपना सुख दुःख
रोते हैं अपना दुखड़ा
पैरों से कुचले जाने पर टूटते हैं
बिसूरते हैं
फिर सोंचने लगते हैं
काश वे भी नोटबुक होते
कोई छात्र उन्हें प्यार से रखता
सहेजता अपने बैग में |
तभी एक पैकेट खुश हो गया
जब उसने देखा कि एक युवा ने उसे उठा लिया है
जमीन से
और खुशबूदार  डाट पेन से लिखता जा रहा है
अपने संस्मरण
और वह लिफाफा अब गमकता जा रहा है |

सत्ता

सुबह सुबह
पूर्व दिशा के मैदानी भाग में
उड़ रही थी धूल
घोड़े की टाप भी सुनायी पड़ रही थी
कोई तो आ रहा है ....
पर कौन ? ....
कोई तो होगा ही
उसके आने के वेग से कांपती दिशाएं
पूर्वानुमान हमें करा रहीं थीं
परिवर्त्तन की
सत्ता के पलटने की |

रविवार, 7 जुलाई 2013

पारदर्शिता शिक्षक की

सर्वोत्तम कम्प्यूटर मानव मस्तिस्क का निर्माण
छात्र और शिक्षक मिल कर ही करते सदा
इन दोनों का सम्बन्ध का पारदर्शी होना
हमारे समाज के लिए है हितकारी
दोनों ही हैं नींव हमारी
पर शिक्षक की है बड़ी जिम्मेदारी |

छात्र

छात्र के अवचेतन में
सोया रहता है शिक्षक
बादल गरजे
शीतलहरी चले
या चले लू
हिम्मत बंधाता है उसे |

बेटी में बसें पिता

     

बेटी आजीवन पिता की ही होती है
पास रहे या दूर
पिता ही जीते हैं उसमें
आजीवन |
जिस दिन पिता का जनाजा उठता है
बेटी के हृदय से
उस दिन वह मात्र एक मादा जानवर बन जाती है |

आप अकेले कभी नहीं

छोड़ देते हैं साथ सब
जब आपको उनकी जरूरत होती है
अकेले पा आपको
आपका अनुभव और आत्मविश्वास चलने लगता है आपके साथ साथ
बियाबान बन हो या  रेतीला मैदान
बस मौन चलने लगते हैं आप अपने ही प्रकाश  पुंज के सहारे
मन का दृढ विश्वास चित्त शांत कर देता है
आपके कदम मजबूत हो जाते हैं
स्वयं को अकेला सोंचना
जीवन की सबसे बड़ी भूल होती है |

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

मेरी मित्र किताबें

मेरी प्रिय मित्र किताबें कुढ़ने लगीं
बढ़ती देख के मेरी मित्रता कम्प्यूटर से
कम्प्यूटर ने मुस्करा कर कहा किताबों से
रुक थोड़ी देर
मैं तुम सब से भी दोस्ती करूंगा |

प्रतिभा की सुरक्षा

किताबों ने समझाया बालक को
सुन मेरे प्यारे
प्रतिभा है पलती अमीरी में
गरीबी में तो एकबार भभक कर रोशनी देती
फिर गुल हो जाती |

बुधवार, 3 जुलाई 2013

दादागिरी

धरती तेरी है न मेरी है
यह तो हम सबकी है
फिर क्यों तू बनाता दुकानें
और ठोंकता घर
एक आवाज आयेगी
सुनामी की तरह
व्यवस्थापक की
मिट जायेगा तेरा कब्ज़ा सरकारी जमीन पर
क्यों दिखता दादागिरी तू
गरीबी के नाम पर |

खुश रहे धरती

तुम्हे देख रहा आकाश
परेशान न करना  धरती को
गर उसका सुप्त ज्वालामुखी फूट पड़ेगा
बच न पायेगा कोई तब
उस लावा से तुम धातुएं तो पा लोगे
धनी तो बन ही जाओगे
पर तुम्हारे अपने खो जायेंगे |

आशा

आशा सी न ठगिनी कोय
रात में थपकी दे सुलावे
भोर भोर उठावे 
पर कभी हाथ न आवे |

खोना न स्व

इतना प्यार कभी न करना
पिता पति और पुत्र को
कि वह बंधन बन जाये जीवन भर का
घोट दे तेरा अस्तित्व
सुन ओ नारी !
क्यों कि तू सृष्टिकर्ता है
धुरी है समाज की
गुलाम तो पैदा करेगा
निज सरीखा गुलाम ही
पुत्र हो या पुत्री |

औलाद अकेली कभी नहीं

तू जहाँ भी रहे मैं हूँ साथ तेरे
मेरा अहसास पायेगा तू
हर घड़ी
धड़केगा दिल मेरा तेरे लिए
न सोंचना  कभी खुद को अकेला तू
हर पल उठेगी मेरी आवाज
सन्तति तेरे लिए
कोई रहे न रहे मैं हूँ  ना |

छात्रों से फायदा

अरे ओ बैंको !
सबसे ज्यादा कमाते तुम छात्रों से
सूद के रूप में
फिर भी तुम उन्हें परेशान करना न चूकते
तुम्हें मजा चखाते व्यापारी वर्ग
नाच नचाते ताक धिन |

बांटिये मुस्कराहटें

मुस्करा कर चलते  रहिये
क्यों बांटेगे गम किसी की झोली में
बाँटना है तो बांटिये अपनी मुस्कराहटें
मिलेगी प्रसन्न आखों की चमक आपको
कुछ पल को भूला देंगी वे
आपका गम |

अपनी जिन्दगी

कुछ अपने से लोग
कुछ अपनी सी जिन्दगी
बस यूँ ही चलती रहे
अपन जिन्दगी |

चर्चा में रहे

हम बढ़ते रहे
लोग जलते रहे
हमने क्या खोया यह न सोंचा किसी ने 
पर यही क्या कम था हमें
कि बस हम चर्चा में बने रहे |

मन की न सुन

सुन मेरे प्यारे !
तेरी बुद्धि से न बड़ा शिक्षक कोय
मन की सुन करे जो
पाठ  पढ़ाये समय उसे |

आ जायेंगे तेरे ईश

पुकारो !
ध्यान लगाओ
आ जायेंगे तेरे सर्वशक्तिमान
तेरे ही हृदय में
क्यों जाता खोजने उसे पहाड़ों पर मैदानों में
वो तो बसता तुझमें
क्या पूण्य कमाएगा ! जब तेरा अपना तड़पेगा
ओ रे मुर्ख मन !
निज हृदय से
खरपतवार चुन फेंक
क्यों करता तू बराबरी उनसे जो
तीर्थ कर पूण्य कमाते
सुन मेरी मनुष्यता ही धर्म है
और तू मानव का कल्याण कर |

मौसम

चल हो जाये
ओ मौसम ! तेरे साथ
एक बाजी ताश की
चल खेलते हैं ट्वेंटी नाइन
और देखते हैं चाल तेरी |