शनिवार, 7 नवंबर 2015

दुःख चुपचाप दुबका पड़ा था



-इंदु बाला सिंह

पल भर में गुजर गयी
वह मां के पीछे पीछे डुगुर डुगुर चलने वाली बिटिया
स्तब्ध रह गयी मैं...........
अस्पताल पहुंचने से पहले ही  निर्जीव हो चुका था
उस बिटिया का  शरीर
और
अब बाकी रह गईं थीं
रीति ...........
दुःख चुपचाप दुबका पड़ा था
कहीं कोने में ।


कुछ पल बाद याद आयी मुझे
तीन दिन बाद आनेवाली दीवाली । 

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