16
November 2015
12:36
-इंदु बाला
सिंह
ओ
रे मित्र !
किस गम में
टूटा तू
जगा चेतना
उठ
खड़ा हो
कि
कर्तव्य रहा
तुझे पुकार ........
देख
जरा तू अपने हाथ
ये ही तो तेरे
सुख दुःख के साथी
तुझे
खिलायें ..........पोंछे ..........तेरे आंसू
उठ साथी !
सार्थक कर
अपना मानव
जन्म .......
कुछ नया कर
कुछ बीज दे जा
इस जग को
लहलहाएगा तू
जरूर ...........निस्सीम आकाश के नीचे |
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