27
November 2015
08:57
-इंदु बाला सिंह
क्यूं बंधूं मैं
हवा हूं
बहुंगी
झाड़ियों से
धीरे धीरे निकलूंगी
रुकुंगी
बार बार जन्मूंगी
और
मिलूंगी तेरी मिट्टी में
ओ
री धरा !
न बांटना मुझे
किसी घर में
न दान करना
मुझे
तेरी थी
सदा तेरी ही
रहूंगी |
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