24 June
2014
21:48
-इंदु बाला
सिंह
खाली होते ही
आ खड़ी होती
है
चेहरों की
भीड़
फिर
उस भीड़ में से
एक चेहरा तन
कर खड़ा हो जाता है
आखों
के सामने ..........
जितना भी
हटाओ
न
हटता है वो
तब परेशान हो
कर बांध देती हूं
उस चेहरे के
व्यक्तित्व को
एक कृति में
..............
शब्द दे कर
उसे संचित कर
देती हूं
इस आस्वासन के
साथ
कि हम रुक कर
मिलते बाते करते हैं
और
वह चेहरा
इंतजार करता रहता है मेरा
मेरे पन्ने
में |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें