शुक्रवार, 27 जून 2014

कृपा है


27 June 2014
10:58
-इंदु बाला सिंह

वह आज खुश था
चहक रहा था
उसे प्रोमोशन मिल गया था ........
वह मेरे टेबल पर आ गया ........
मैं बहुत खुश हूं
मुझ पर
माता रानी की कृपा बनी हुयी है .........
और
मुझे याद आया
कुछ ही दिन पहले उसने कहा था .....
मेरी माँ गांव में रहती है
उसके न रहने पर
मैं गाँव का घर और खेत बेच दूंगा
और
यहीं शहर के अपने प्लाट में
एक दो मंजिला मकान बनवाऊंगा |

मुंडेर का जामुन


27 June 2014
09:00
-इंदु बाला सिंह

छत की मुंडेर पर
एक चिड़िया
चोंच में जामुन पकड़ कर आ बैठी
ज्यों ही
चिड़िया ने जामुन रखा मुंडेर पर
वह
हुर्र र र ..........की आवाज निकली
चिड़िया उड़ गयी
उसने जामुन लपक लिया
वह बच्ची नहीं
भूखी थी
घर की परित्यक्ता थी |

जिम्मेवारी


27 June 2014
07:05
-इंदु बाला सिंह

तुमने चुभोया तो
हम क्यों तिलमिलाएं
हम तो
नित अपनों की चुभन झेलते हैं .........
राह
अंधेरी है तो
हमें क्या डर है
हम तो
अंधेरे घर में रहते हैं ............
प्राण है तो
जिम्मेवारी है
हम अपने दोनों हाथ में
दिल और दिमाग का प्रकाश दीप  लिए चलते हैं |

चमचमाती थाली


26 June 2014
07:06
-इंदु बाला सिंह

खटिये पे
लेटे दादा ने
लाठी घुमायी
पोती को बाहरी दलान से भगा दिए  ....
भीतर जयिबू की नाहीं .....
और
पोते को  खटिये के पास खड़ा कर
पहाड़ा पूछने लगे ............
घर में
बड़की माई के बेटे के लिए
उपहार में मिली
चमचमाती स्टील की थाली थी खाने के लिए
जिसे
उसी संयुक्त परिवार की बिटिया देखती थी तृषित निगाह से
पर
उस चमचमाती थाली में
खाने की चाह
उस बिटिया की
उस घर में
कभी न पूरी हुयी .........
लेकिन
घर में
उसी घर की बिटिया में
बेटी हक की आग सुलग उठी |

बिछड़े चेहरे


24 June 2014
21:48
-इंदु बाला सिंह

खाली होते ही
आ खड़ी होती है
चेहरों की भीड़
फिर
उस भीड़ में से
एक चेहरा तन कर खड़ा हो जाता है
आखों के सामने ..........
जितना भी हटाओ
न हटता है वो
तब परेशान हो कर बांध देती हूं
उस चेहरे के व्यक्तित्व को
एक कृति में ..............
शब्द दे कर
उसे संचित कर देती हूं
इस आस्वासन के साथ
कि हम रुक कर मिलते बाते करते हैं
और
वह चेहरा इंतजार करता रहता है मेरा
मेरे पन्ने में |

वीरांगना को नमन


24 June 2014
10:32
-इन्दुबाला सिंह

नमन है
वीरांगना दुर्गावती को
और
हर उस वीरांगना को
नमन 
जो न हारी
अपने जीवन में
और
एक
शानदार
आदर्श जिन्दगी  जी |

सोमवार, 23 जून 2014

बिटिया की कीमत


24 June 2014
06:57
-इंदु बाला सिंह

कम उम्र में
सरकारी अधिकारी पति खोयी
युवती ने
अपनी पुत्री के लिए
सुना था
मैंने
एक पुलिस अधिकारी पति चुना
और
आज
बीस वर्ष पश्चात्
उसे ढली उम्र में
सजी संवरी महंगे कपड़ों में
नाती नातिन के सहारे
तीन सितारा होटल में प्रवेश करते देख
मन खिल उठा ........
उस प्रौढ़ा के
पीछे पीछे चलते बिटिया दामाद ने
मुझे
बेटी की कीमत समझायी .....
सुना था मैंने
वह
अपने ठेकेदार बेटे के साथ नहीं रहती है |

दमित लडकियां


23 June 2014
06:50
-इंदु बाला सिंह 

सुबह
जब दिखती हैं
हाफ पेंट और टी शर्ट में
कान में मोबाइल का तार डाले 
मजबूत कदमों से
सड़क पर से गुजरती हैं बी० टेक० लडकियां
तब
लगता है
बस अब कुछ पल में ही
आजाद
स्वावलम्बी हो जायेगी हर लड़की
पर
साल पर साल गुजरते जाते हैं
और
अख़बारों में दिखती रहती हैं
दमित लडकियां |

वांछित पानीदार लड़कियां


22 June 2014
09:34
-इंदु बाला सिंह

अँधेरे
मद्धिम रोशनी में
अपने घर के
एकमात्र कमरे में
घर के
सदस्यों के काम पे निकल जाने के बाद
महंगी साड़ियों के ढेर के बगल में
बैठ
फाल लगाती हैं
बेल बूटे काढ़ती हैं
घर की आमदनी बढ़ाती हैं
शहर की 
पानीदार लड़कियां .......
भाई के उतरे पेंट शर्ट पर ओढ़नी ओढ़
घर के सदस्यों का खाना बना
जी लेती हैं ये लडकियां ...........
घरेलू सजातीय मित्र के
पुत्र से
ब्याह होने पर
अपना घर बसाती हैं
और
उस घर की इज्जत बनती हैं
ये
शहर की पानीदार लडकियां ........
सड़कें
इन लडकियों को
उनके गन्तव्य तक पहुंचाती हैं
और
सड़क के किनारे के वृक्ष
आकाश होते हैं
इन लडकियों के ...........
समाज की आधार होती हैं
ये वांछित पानीदार लडकियां |



शनिवार, 21 जून 2014

चंचल मन


21 June 2014
12:49
-इंदु बाला सिंह

मन तो
छोटा चंचल भाई है
दौड़ता रहता है
इधर उधर ........
वह तो
हर पल खेले
छुप्पा - छुप्पी .......
पर
बड़ी बहन बुद्धि की एक डपट पे
सहम जाये
और
बैठ जाये
चुपचाप कुर्सी पे
लेकर
अपनी किताब हाथ में |

बेटी


21 June 2014
06:45
-इंदु बाला सिंह

रिश्तों में जीती
सांसें लेतीं
ध्वजा फहराती
बेटी
कभी न भूलती
अपनी जड़ |

बहुरानी


20 June 2014
22:15
-इंदु बाला सिंह

बहुरानी
ब्याह के बाद आयी ससुराल
सात दिन बाद
चली गयी पिया के घर
फिर
ससुर की तेरही में आयी
चली गयी
सब ससुर के रिश्तों व मित्रों से  मिल के ..........
नौकरी से छुट्टी नहीं मिलती थी
बहू को ........
सास की तेरही में
उसकी जरूरत भी न थी
उसकी लोकलाज की चिड़िया उड़ चुकी  थी .........
और
अब
उसका सिक्का चल निकला था |

शनिवार, 14 जून 2014

फेरों का विश्वास


14 June 2014
10:56

-इंदु बाला सिंह

सात फेरे लेते ही
एक अनजान युवा
बन जाता है
एक युवती के मन की सम्पत्ति
भले ही
वह युवा
उस युवती के जीने की राह में
कभी भी
साथ न दे
पर
जब तक
वह पुरुष जीवित रहता है
तब तक
दूर रह कर भी
समाज व क़ानून की निगाह का जीवन साथी
पत्नी को दिखता है स्वप्न में
और
उसके कष्टदाताओं को
ललकारता रहता है
पर
उसी दूरस्थ पति की मौत की खबर
पाते ही
वह युवती
लड़ने लगती है
समझौते करती है
अपने
दुश्मनों से
अपने स्वप्न में ......
यह भी एक
अद्भुत विश्वास है
फेरों का |






अकेला हूं

- इंदु बाला सिंह 

ओह !
माँ आयी नहीं अब तक 
डर लगता है 
घर में 
मुझे 
भूख भी लगी है 
अकेला हूं |

उल्लू बच्चे


11 June 2014
11:04

-इंदु बाला सिंह

बच्चे को 
उल्लू कह कर डांटनेवालो !
देखो कितना सहमे हैं 
डरे हैं 
ये उल्लू पक्षी
उल्लू सा निरीह 
और 
प्यारा जानवर कोई नहीं 
शिक्षक !
क्या 
तुम्हारे हृदय में करुणा नहीं !

सोमवार, 9 जून 2014

नियति क्या चाहे तू


08 June 2014
21:24

नियति
वाह !
क्या खूब नचाये तू
हमें
खेत न लहलहाए हमारे
रोक के रखे तू
बादल सारे
हम
बीज बो कर बैठे हैं
ताकें
अब आसमान को ..........
तू
भी क्या रिश्वत चाहे ?

अनोखा पौधा


08 June 2014
20:33

-इंदु बाला सिंह

सत्य
और
श्रम के
मेल से
जन्मे
अनोखे पौधा को
वृक्ष
छायादार व  फलधारी बनने में
वर्षों लग जाते हैं
कभी कभी
उस पौधे के विशाल खुबसूरत रूप को
उसे प्रतिदिन
जल से सीन्चनेवाला
खाद देनेवाला
माली भी
नहीं देख पाता है
पर
वृक्ष लगा पाने की
खुशी से बड़ी
एक माली की कोई नहीं होती है
और
इसी खुशी के साथ
वह
जग से
कूच कर जाता है |



फेसबुकीय हम


08 June 2014
07:36

-इंदु बाला सिंह

थैंक्यू !
फेसबुक
तुम्हारे अलबम खुलते
एक क्लिक में
और
हम जी लेते
अपने पुराने दिन
दुसरे क्लिक में
हम सोंचते
हम जीवित रहेंगे
इसीमें
हमें
ढूँढनेवाला
चाहनेवाला
पायेगा हमें यहीं
सांसे लेते
हंसते मुस्काते |

चपत


07 June 2014
22:48

-इंदु बाला सिंह

माता के
त्याग और श्रम को झुठला
जब
सम्मान पा
पैसे का बल
और
शान शौकत
सन्तान
दिखाती है
निज माता को
तब
उससे करारा  मानहानि का चपत
लगानेवाला
जग में
ढूंढे

न मिलता माता को  |

बराबरी


07 June 2014
12:39

-ईंदू बाला सिंह

बराबरी में ही होती
मित्रता
सम्बन्ध
बाकी सब तो
छल
और
शोषण है |

स्त्री का मान


07 June 2014
11:30

-इन्दु बाला सिंह

बहन बेटी का
अपमान कर
घर के
पुरुषों को
अपमानित कर पाने की प्रवृति
जिस दिन मिट जायेगी
मानव की
उस दिन
हर स्त्री स्वतंत्र हो जायेगी |

घर का अनुपस्थित व्यक्ति


06 June 2014
09:37
-इंदु बाला सिंह

वह
आजीवन
दूसरों के लिए
साँस लेता रहा
उनकी सहायता करता रहा ..........
ये कैसी सोंच थी उसकी !
कि
उसका अपना घर
सूना रहा
उसके आने की बाट
जोहता रहा
और
उसकी
उपस्थिति के लिए
तरसता रहा |

शुक्रवार, 6 जून 2014

डिग्री बड़ी है


07 June 2014
10:34

-इंदु बाला सिंह

डिग्री 
ज्ञान से ज्यादा
है जरूरी
नौकरी मिलेगी
तब
न ज्ञान बढ़ेगा
अपने मिलेंगे
घर बसेगा
प्यारे बच्चो !
गुमराह न होना
बिन डिग्री के जी लोगे तुम
ऐसे सपने
कभी न देखना
व्यापर हो
या
ठेकेदारी
हर क्षेत्र में
महिला हो या पुरुष
डिग्री सबके लिए है जरूरी
अपने हर शौक
पूरे करना
पर
विश्वविद्यालय से
डिग्री लेना न भूलना
डिग्री ही तुम्हारा मान है
तुम्हारा
स्वाभिमान है |

गुरुवार, 5 जून 2014

सास की साड़ी


05 June 2014
22:52

-इंदु बाला सिंह

बहू
सास के लिए
लायी थी
पांच सौ की साधारण साड़ी
बड़े शौक से वह
दिखा रही थी
वह सास को
अपनी नयी बीस हजार की
कांजीवरम  साड़ी
जिसे
उसने ससुराल आते समय खरीदा था ........
घर में
बहू से मिलने आयी पड़ोसन
मौन
नयी पौध का
यह गुण
देख रही थी
परख रही थी ..............
उस लायी साड़ी को भी
अपनी सास को पहना कर
बहू ने
फोटो भी खींच ली ..........
उसे भय था
कि
उसकी लायी नयी साड़ी
सास अपनी बिटिया को उपहार में न दे दे .......
घर जा
पड़ोसन ने
पहला काम बीस हजार की साड़ी
अपने लिए
आन लाईन ऑर्डर देने का किया
वह
नहीं चाहती थी
कि
पड़ोसन सास की तरह का दिन
उसके जीवन में आये
और
उसे तरसना पड़े
महंगी साड़ी के लिए  |

सोमवार, 2 जून 2014

सबल बिटिया


02 June 2014
21:20
-इंदु बाला सिंह

समानता का पाठ
पढ़
पैतृक सम्पत्ति में
भाई के बराबर हक पा
पिता के घर में
यदि
लड़की भी
पुत्र सी
समझदार हो चली ............
सभी
सरकारी योजनाओं का फायदा उठा
गर
वह तुझे भूल चली
तो सुन !
ओ मेरी मित्र !
सोंच ले
तूने नेकी कर दरिया में डाला ..............
कम से कम
तूने अपनी बिटिया को
सबल तो
बना ही डाला |

वह पुस्तक विक्रेता


02 June 2014
14:16
-इंदु बाला सिंह

सड़क के किनारे
जमीन
छेक कर बनायी गयी
दुकान की
गुमटियों के पंक्ति की
एक बड़ी सी
टीन की गुमटी
और
उसमें बिकनेवाली
पुरानी
कुछ
चमकती हुयी
तो
कुछ
पीली पड़ी
बच्चों के लिए
चित्रकथाएं
पत्रिकाएं
महिलाओं के लिए 
पत्रिकाएं
युवाओं के लिए
उपन्यास
छात्रों के लिए
आठवीं से बारहवीं तक की
सी० बी०  एस०  इ०
और
आई० सी० एस०  इ० 
की किताबें
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की
किताबें
कंप्यूटर की पत्रिकाएं
मैदे की लेई से
चिपकाते
बाईंड करते
और
बेचते
उस पच्चीस वर्षीय युवा को
एक नई पुस्तकों की
बड़ी सी
दूकान का मालिक बनने में
कालेज में 
पुस्तकों के सप्लाई करने
और
पुस्तकों का स्टाल लगाने का टेंडर लेने में
उसका अथक उत्साह
और
परिचय रंग लाया .........
मात्र दस वर्ष में ही
देखते ही देखते
वह
सड़क के किनारे
रद्दी से किताबें खरीद कर बेचनेवाला
युवा
एक समृद्ध पुस्तक विक्रेता बन गया
और
बेरोजगारों के लिए
एक अनूठा उदाहरन बन गया .......
आज भी
उस के दुकान का
एक रैक
छात्रों की
पुरानी पुस्तकों से भरा रहता है ......
आज भी
परीक्षा फल निकलने के बाद
एक चौथाई दाम में
छात्रों से
खरीदी गयी
ये
रीप्रिंट वाली पुस्तकें
वह
बड़े आराम से बेचता है
और
अपने
पुराने कौशल को याद रखता है |

घर


31 May 2014
20:55
-इंदु बाला सिंह

घर क्या चीज है
बेघर से पूछो
हम तो
यादों में ही
अपना घर लिए फिरते हैं |

सबल और दुर्बल


30 May 2014
22:19
-इंदु बाला सिंह

सबल
और
दुर्बल
डिक्शनरी के
ये दो शब्द पढ़
हम
ढूढने लगते हैं
इन दो श्रेणियों में
अपना स्थान .....
हमारी
ये दो श्रेणियां
मात्र हमारी मानसिक उपज की
आपसी रंजिश का अंत
सबल द्वारा 
दुर्बल के
बलात्कार से प्राप्त
आत्मिक तुष्टि में होती है .......
जिस दिन
दुर्बल शब्द
हर व्यक्ति की
डिक्शनरी से मिट जाएगा
उसी दिन
सबल शब्द भी
अपना अस्तित्व देगा .........
तो
क्यों न
आज
हम
अपनी इस
सबल दुर्बल की मानसिकता को
मिटा दें
वर्षों से चले आ रहे
इन दोनों  शब्दों को
अपनी डिक्शनरी से हटा दें |







स्त्री चेतना


28 May 2014
11:32
-इंदु बाला सिंह

सास के सुख दुःख में
हंसने रोनेवाली
बहू
जब तक
सास बनी
तब तक
युग परिवर्तित हो चुका था
और
पुत्र द्वारा नियुक्त 
कामवालियां
सास के साथ जीने लगी थीं
अपनी पगार लेने लगी थीं ..................
सास ने
अपने ही घर में
अपना वर्चस्व
और
बहू नाम की मिठास को
खोने लगी थी ........
देखते ही देखते
घर के बाहर और भीतर
युवाओं का
युग आ गया था ........
ये कैसी समाज चेतना थी
जो
मजबूती के नाम पर
दिलों को
भावहीन कर रही थी  |

सपनों का पहाड़



27 May 2014
11:42

-इंदु बाला सिंह 

उसके सपनों के पहाड़ 
की कहानी 
सुन हंसते थे सब ..........
इतने ऊंचे पहाड़ ने
उसे जब नौकरी न दिलायी
तब
वह
प्रतिदिन
अपने उस सपनों के ग्रेनाइट के पहाड़ का
एक टुकड़ा
समय को बेच देती थी
और
अपने परिवार का पेट पालती थी .........
यह अजूबा धंधा
जग
इर्ष्या से
देख रहा था
और
उसकी औलादें
सीढ़ी डर सीढ़ी चढ़ रहीं थीं |

मोहग्रस्त शिक्षक


27 May 2014
07:19

-इंदु बाला सिंह

शिक्षक !
तू
भुलावे में क्यों जीता .......
ज्ञानी
साधारणतया भूखों मरता ........
तुझसे
ज्ञान पा
छात्र
अगर तेरा अहसानमन्द रहते 
तो
तुझसे ज्ञान प्राप्त
हजारों छात्र
किसी दिन
तुझे
अकेला न छोड़ते
हर दिन तेरा
ड्राईंग रूम तेरे छात्रों से गुलजार रहता
अपने जन्मदाता से
मुंह फेरनेवाले
तुझे क्या याद रखेंगे ........
ज्ञान देने की
तूने तनख्वाह ली
या
ज्ञान दान दिया
यह
तेरी जरूरत थी
तेरा अपना शौक था ..........
आशा
ने
निराशा को जन्म दिया
का
दूसरों को
पाठ पढ़ानेवाला
आज
अपना पाठ
कैसे तू भूल गया
खुश रह तू
तुझ पर टिकी है
तुझे देख रही
आज
आनेवाली पीढ़ी |



आम लडकियां


22 May 2014
07:03

-इंदु बाला सिंह

आम लडकियां
हंसमुख और निश्चिन्त
होती हैं ........
एक खूंटे से बंध
वे
जीती हैं अपना जीवन ......
कूलर की ठंडी हवा में ही
वे 
जुगाली करती रहती हैं
और
खूंटे की
सलामती के लिए
व्रत त्यौहार करती रहती हैं ........
वैसे
जंगल है न
खूंटे की
अनुपस्थिति में
दैव को कोसती हुयी
समय के सहारे भी
जी ही लेती  हैं लडकियां |