शनिवार, 20 अप्रैल 2013

ओ ! पिता !


क्या करें !
दामाद कार एक्सीडेंट में गुजर गये
ला कर रखा हूँ घर में
लड़की का एक बेटा है पढ़ता है स्कूल में
बड़े घर में लडकियां नौकरी नहीं करतीं
शहर में अकेली  लडकियों की भरमार है
सब पिता के घर में पिता पर आश्रित हैं
कोई दहेज के कारण
तो औलाद न होने से पति के पुनर्विवाह के कारण
कोई कोई तो पति के निकम्मे होने के कारण
विभिन्न कारणों से लडकियां पिता के घर में रह रही हैं
पर ऐसा कब तक ?
पिता के न रहने पर !
इन लडकियों का क्या होगा ?
ये ऐसी गुमराह सजीव मूर्तियाँ है
जो देश की नगण्य नागरिक हैं
जिनका भविष्य अपमानजक व भयावह है
कुछ समझदार पिता फटाफट पुनर्विवाह भी कर दे रहे हैं ऐसी लडकियों का
शायद इस बार सुख मिल जाएगा बेटी को
पर इन पिताओं को  यह क्यों समझ नहीं आता
कब तक उनकी बेटियां
अपने पति की कमाई खायेंगी
पति के नाम से पहचानी जायेंगी व सुख भोगेंगी
जीवित बेटी को अपने बेटे की ही तरह
अपने पैरों खड़ा होने का सपना क्यों नहीं देखते
ओ ! समाज के सारे पिता |

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