पिता और पति
के न रहने पर
जब देवर या
अपने से छोटे भाई का राज हो जाता है
उसके अपने घर
में
तब होश आता
है लडकी को
अरे
! मेरा तो कोई अस्तित्व ही नहीं
घर तो पुरुष
सत्तात्मक है
और तब आक्रोश
पैदा होता है
चेतना जागृत
होती है
दुखी होने
लगती है
पिंजरे के
पंछी सी छटपटाने लगती है
वो
लड़की तो बस
हंसती खेलती बड़ी हो जाती है
जेवर व भारी
जरीदार साड़ियों का तिलिस्म
कितना मस्त
होता है
विद्यालय और
बड़े क्यों कतराते हैं
लड़की को
समझदार बनाने से
उसे अबोध ही
बने रहने देना चाहते हैं
क्या हम अपनी
बेटी का शोषण नहीं कर रहे ?
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