कितना सहज
होता जीना
हर मुसीबत
में
किसी
पुरुष रिश्ते के पीछे छुप जाना
औरत हूँ न
जीने के तरीके
न सीखूं
तो भला
जीयूँगी कैसे
इस पुरुष
सत्तात्मक समाज में आज |
कोई घर में
चंदा मांगे
...साहब घर पर
नहीं है ..
कोई उधार पैसे
मांगे
..सब पैसे तो
घर में खर्च हो जाते हैं ..
आफिस में थोड़ा
अधिक समय काम से रुकना पड़े
...साहब
गुस्सा होंगे ..
सस्ती साड़ियां
पहनूं
...साहब को
आडम्बर पसंद नहीं ..
अगर साहब नहीं
तो भाई , पिता ,चाचा , मौसा
कोई न कोई
रिश्ता तो हैं न |
पर भला ऐसी
औरत को कोई उच्च पद क्यों दे
जो समस्या का
सामना न करे
सदा किसी न
किसी के पीछे छुपती रहे |
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