आधी सृजनशील
आबादी
रहती है सदा
जिन्दगी की पिछली सीट पर
सब समझती है
पर देखती
रहती है पुरुष सत्ता को
सोंचती है
कब उसके दिन
बहुरेंगे
ज्यादा
आक्रोश उसे पागलखाने पहुंचा देता है
ऐसी स्थिति
में मुक्त हो जाते हैं घरवाले
अपने मकान के
हकदार से
और देश खो
देता है एक प्रतिभा
ये कैसा धन
और सत्ता का युद्ध है
जहां स्त्री
मात्र एक घरेलू मजदूरनी है
खुद जब लड़ने
लगेगी स्त्री
तो क्या क्या
होगा
यह शायद किसी
को सोंचने की फुर्सत नहीं
सरकारी
योजनाओं में तो मुक्त है नारी
पर
सच में कब मुक्त होगी आधी आबादी ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें