बुधवार, 24 अप्रैल 2013

असह्य अवगुण बेटियों के


समानता ने मिटा दिया है
बेटी बेटे में फर्क
अच्छाइयों के साथ समेट रही हैं
बुराइयाँ भी बेटों की अपने में
आज बेटियां |
सहज ही लगता है बेटियों को
हमबिस्तर होना नौकरों के साथ
अपने से कम प्रतिभाशाली पुरुष को
जीवन साथी की मान्यता देना |
परिवार के गले नहीं उतर रहे ये अवगुण बेटियों के
और घर में ही जन्म लेता है अपराध
मिट जाती हैं स्वतंत्र मुक्त अस्तित्व वाली बेटियां
कानून के साथ समाज के संकुचित विचार न बदले
बेटी की समानता क्रोधित करता है
खून के दूर के रिश्तों को
बेटियों को हर पल सुरक्षा चाहिए अपनों की , कानून की और समूह की
क्या समानता की प्रगतिशीलता के नाम पर
अपनी बेटी का शोषण कर उसे मिटाने की
एक क्षद्म चल नहीं चल रहे हम !
क्यों नहीं हम क्षमा कर पा रहे
अपनी बेटियों के अवगुण
क्यों नहीं सही राह पर ला पा रहे हमे उन्हें
क्यों नहीं बदल पा रहे हम खुद को !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें