रविवार, 31 मई 2015

हठीली गर्मी


31 May 2015
22:54

-इंदु बाला सिंह

बिजली रानी
दिखाती डिस्को
कहती गर्मी को खिसको
पर
वह बरसा रानी को अपने संग लाना भूल गयी |
नौतप्पा की हठीली गर्मी पसरी है
घर में
छत पे ........
रात बेचैन है
चाहे छुपना  ए० सी० में
पर
कमरे के दरवाजे बंद है |

मंगलवार, 26 मई 2015

कैद कल के पल


26 May 2015
15:24


-इंदु बाला सिंह

खुबसूरत
कैद कल के पल
देख
जी लेते हैं हम आज
वर्ना
यह जीना भी क्या जीना है यारो
हो के कैद
अपने ही मन के किले में |

रविवार, 24 मई 2015

कृष्ण में पुत्र का रूप देखे वह


25 May 2015
04:29


-इंदु बाला सिंह


रात के अंधियारे में
गूंजती थी
उसकी
कभी कभी गीत की पंक्तियां .....
राधा क्यूं गोरी मैं क्यूं काला ........
कृष्ण के बालरूप में
वह माँ याद करती थी
अपने उस धनी पुत्र को
जो
सपरिवार जा बसा था विदेश
और
जिसकी स्वार्थपरता पर
शिकायत के दो बोल भी न फूटते उस अकेली माँ के मुंह से
यह
उसका छिना पुत्र प्रेम था
या
समाजिक मान की तलाश थी ?
न जाने की था
पर
जो भी था
यह एक अवहेलित पैसोंवाली माँ का रुदन गीत जरूर था
और
रात में मेरी नींद टूट जाती थी
सुन कर वह गीत  .......
आखिर डट के क्यों न कोसती थी वह औरत
अपने पुत्र को
जो 
अपने पिता पिंडदान से निपट चूका था |





शनिवार, 23 मई 2015

ढूंढूं भगवान


24 May 2015
10:34

-इंदु बाला सिंह


कौन बोलता है !
भगवान हैं
होंगे तो अंधे होंगे
तभी न दिखता उसे
भूखा बालक
छतहीन औरत
कचरा में नसीब ढूंढता कंकाल
अपनों का हक हजम करता इंसान
वर्ना
अपने ही अंश को तड़पते देख
क्या न तांडव करता
वह |

गुरुवार, 21 मई 2015

एक व्हील चेयरवाली बुजुर्ग दिखी आज


22 May 2015
08:01 
-इंदु बाला सिंह

सुंदर लडकियां व लड़के
सांय सांय गुजरती लम्बी कारें
विशालकाय मकानों के ग्राउंड फ्लोर में खड़ी कारें
और सामने बैठे सिक्युरिटी गार्ड हमारे मुहल्ले को सुरक्षा के साथ ही साथ भब्य्ता भी प्रदान करते हैं ......

हमारा मुहल्ला पॉश है
हम मकान की आपसी निजता का मान रखते हैं
मुहल्ले की खबरें
हम अखबार में .पढ़ते हैं ......

एक शाम दिखी एक व्हील चेयरवाली औरत
फिर हर रोज घुमायी जाने लगी सड़क पर एक कामवाली द्वारा
न जाने किस मकान की निवासिनी थी वह
वह अजूबी कृशकाय उम्रदराज .......

उस चलते फिरते इतिहास को
चाह कर भी न पढ़ पायी
क्यों कि
हमारे मुहल्ले की शान के खिलाफ था यह |

पेड़ पर्दा होता है


21 May 2015
22:46
-इंदु बाला सिंह

पेड़ पर्दा होता है
दो झरोखों के बीच का
दो घरों के बाहरी दरवाजों के बीच का
जिस दिन यह बात हमें कंठस्थ हो जायेगी
उस दिन से
हम अपने घरों के
अगल बगल और आगे पीछे  
पेड़ लगाना याद रखेंगे
और
हमें कृत्रिम पर्दों की आवश्यकता न रहेगी |





कुछ मर्दों की मस्ती


21 May 2015
22:31

-इंदु बाला सिंह


मोटरसाइकिल इतनी बगल से काटा वह
कि
सड़क के फूटपाथ पर चलते चलते
गोल घूमी
और साईड हो गयी मैं
बेहया की तरह वह
फिर लौटा और कहने लगा ...
मैं आपको धक्का नहीं दे रहा था
ठीक है जाईये ....कह बैठी मैं
सड़क की मस्ती भी खूब होती है कुछ मर्दों की
खाली रोड में इस तरह ड्राइव करने का मतलब न समझूं
इतनी भी नासमझ नहीं थी मैं |

रविवार, 17 मई 2015

प्रिया



Indu Bala Singh

May 18, 2012 at 11:48pm 
·
कुपित हुये महादेव
शुरू हुआ तांडव
लो बजा डमरू
हुंकार निकली
धरती डोली डगमग डगमग
कांपा अम्बर
आयी काली आंधी .............
प्रिया के अपमान ने
लिख दी
नयी इबारत |

गेंद बन गयी थी बिटिया


Indu Bala Singh

May 18, 2013 at 3:13pm ·

गेंद बन गयी थी बेटी
पिता ने फेंका दामाद की तरफ
दामाद पकड़ा और फेंका जोर से वापस अपने ससुर की तरफ
परेशान पिता ने फेंका अपनी गेंद अपने नाती की ओर
क्रोध में नाती ने वह गेंद फेंक दी पूरी ताकत से तीस डिग्री का कोण बनाते हुए अनजानी दिशा में
अब पिता , दामाद व नाती तीनों मुक्त थे उस बदरंग गेंद से |

शुक्रवार, 15 मई 2015

क़ाला चश्मा


16 May 2015
09:54


-इंदु बाला सिंह


दिसम्बर के ठंडे दिन में
पहन के काला चश्मा
बन गयी मैं तो सहबायिन
मुझे देख जली रे दुनिया ........
मेरी अश्रुपूरित आंखें छुप गयीं थीं
और
मुस्कुरा रहे थे होंठ |

दबंग बिजलीवाला


15 May 2015
16:08

-इंदु बाला सिंह

तीन दिन से
तन जला रहा सूरज ........
देख दबंगई सूरज की
आया
गड़गड़ाते काला बादल ........
जी हरसाया
दौड़ती आयी आंधी
ले भागी बादल को
और
नसुड्धे मामू ने काटी बिजली......
अब
परेशान मन
कोस रहा
दबंग बिजलीवाले को |

दूर सड़क से आ रही थीं आवाजें


15 May 2015
18:09


-इंदु बाला सिंह


रात साढ़े ग्यारह बजे का समय था
और
मैं सड़क के कूड़े में आग लगा इन्तजार कर रही थी
उनके बुझने का .....
आ रही थीं युवा आवाजें
दूर की सड़क से ........
हा हा हा
कह रही थी वो
मैं तुम्हारी बहन की तरह हूं
हां हा हा
कितनी सारी अस्पष्ट आवाजें थीं
अट्टहास गूंज रहा था
न जाने कौन थे वे
उनके टुकड़े टुकड़े वाक्यांश बहुत कुछ समझा गये 
थोड़ा भयभीत हुयी मैं
फिर सोंची
आखिर ये किसीकी औलाद हैं
कैसे कर्म से आनन्द आता है इन्हें ....
कैसा बोझ छोड़ गये हैं 
इनके जन्मदाता धरा पे |


गुरुवार, 14 मई 2015

अब क्या करेगी कामवाली !


15 May 2015
08:26

-इंदु बाला सिंह


उस कमरे में न जाना
अंचार रखा है वहां
और
उस कमरे में भी न जाना
वहां
मूर्ती है भगवान की
नानी  का आदेश सुन
बूढ़ी पुरानी कामवाली ने
नवेली कामवाली का मुंह देखा ...
अरी !
तू इस बार सावित्री व्रत कैसे करेगी !
और
स्कूल में पढनेवाली नतिनी ने  सोंचा
अब क्या करेगी कामवाली
अब कैसे भला होगा उसके सत्यवान का |



सूखी आंखें


14 May 2015
16:43
-इंदु बाला सिंह


कोंच कोंच कर रुलाया
समझाया
सबने
उसे .......
भली लगें अश्रुपूरित आंखें
पर
वह ढीठ थी
घूरती थी सबको
अपनी जलती आंखों से
न जाने कहां की आग लगी थी
उसके दिल में
कि
आंसू भाप बन उड़ जाते थे
उसकी आंखो तक पहुंचते ही
और
उसकी सूखी आंखें
रह रह कर उकसाती थीं सबको
उसे कोंचने को |

बुधवार, 13 मई 2015

मुहल्ले का मुद्दा


13 May 2015
15:30


-इंदु बाला सिंह


पड़ोस की लड़की
जबसे घर से भाग गयी थी
तबसे
मुहल्ले की औरतों में
' लड़की ' इन्टरनेशनल मुद्दा बन गयी थी
और
घर की कामवाली और बहुओं का नेशनल मुद्दा
गौण पड़ गया था |

मंगलवार, 12 मई 2015

खोयी है परछाईं


12 May 2015
23:14

-इंदु बाला सिंह

यूं लगे
खो से गये
जहां में
अब हम  ......
लो भूल चले
अब तो हम 
अपने  भी निशां
ये कैसी तन्हाई है
अपनों की भीड़ में खोयी है आज 
अपनी ही परछाईं |

शनिवार, 9 मई 2015

तिलिस्मी दुनिया


09 May 2015
14:05

-इंदु बाला सिंह

अजब है दुनिया
गजब हैं इसका रूप
अबूझ सी पहेली है यह
मीलों चले हम
पर
यूं लगे
हम खड़े हैं जहां के तहां
कितनी रहस्यमयी है यह दुनिया
इसका तिलिस्म न टूटे |

गुरुवार, 7 मई 2015

उड़ गयी अबोधता


08 May 2015
11:17


-इंदु बाला सिंह 


क्या दिन थे
वे
स्वप्नीले
दूर थे
हम
बेईमानी से
छल से
पराये तो ठगते ही हैं
पर
देखे हमने
अपनों के रंग बदलते रूप
ऐसा क्यों ?
इतनी इर्ष्या क्यों ?
इतना स्वार्थ क्यों ?
इतना नशा क्यों सम्पत्ति का
जब
छूट ही जायेगा सब
यहीं पर .........
यथार्थ के तपते धरातल पर
चलते चलते
ऐसे जहां में पहुंचे हम
कि
उड़ गयी अब तो अबोधता
इन्द्रधनुष मन नहीं मोहते
बादल की गरज , बिजली की चमक से जी न डरे अब
बल्कि
उनके जन्म का कारण कौंधे मन में
आज यूं लगे
मानो मन वैज्ञानिक हो गया है
खाली ढूंढता है कारण
बदले कल का
और
आज के समय का | 

मौन से बड़ा न कोई सत्य


06 May 2015
20:03

-इंदु बाला सिंह

ज्यादा इमानदारी पागलपन है 
सुधर जा 
अब भी मौका है 
मौका देख कर खोलना मुंह 
वर्ना 
अकेला हो जायेगा
मौन से बड़ा कोई सत्य है 
जिसने समझ लिया 
वह जी लिया |

मकान का स्वप्न


07 May 2015
09:49


-इंदु बाला सिंह

मकान तो बपौती है
अमीरों की
मर्दों की .............
बेटियां क्या जानें मकान की कहानी
वे तो 
देखती रहती हैं बस दिवास्वप्न
अपनी  जिन्दगी में आनेवले राजकुमार का
जो ले जायेगा उन्हें
अपने मकान में |

मंगलवार, 5 मई 2015

काम का मूलमन्त्र


इमानदारी ही है
काम का मूलमंत्र
मान ले तू
आज |
सपना तेरा
पहुंचायेगा तुझे
सिद्धि के पास |
चाह हूं
मैं तेरी
रहूँ मैं दिल में तेरे
ढूढ़ के देख तो सही |
जीत
हूं मैं तेरी
खोल दे दरवाजा तू
देख ले
भोर है भयी |

सोमवार, 4 मई 2015

हाथ न फैलायें हम कभी


04 May 2015
20:42
-इंदु बाला सिंह


गर स्वाभिमान मिटा
तो
हम लुटे
फिर
ऐसा जीना भी क्या जीना
यारा !
चल
क्यूं कस कर पकड़े
अपनी मुट्ठी में
हम
अपना मान
अपना स्वाभिमान
और
कभी हाथ फैलायें हम
जीते जी अपना
बस
जब तक सांस
तब तक
है आस

सुन ले मेरे यार |

रविवार, 3 मई 2015

जन्मदाता तो हैं बरगद की छाँव

-इंदु बाला सिंह 

रोती सूरत
भाये कुछ लोगों को
महिलाओं की |
भोर गर्मी की
अनुशाषित करे
हम युवा को |
नारी से है घर
समाज की है रीढ़ वह
यह न भूलना कभी तू |
पर
जन्मदाता तो  हैं बरगद की छाँव
इतना याद रखना तू |

बेटी सम्मान तलाशती ही रह जाती है |


03 May 2015
22:13

-इंदु बाला सिंह

बेहतर है
हम बेटी को बेटी ही रहने दें
बेटा कह कर पुकारते हम जब उसे
वंचित रहजाती है वह
कितने ही मधुर पलों से |
आजीवन
बेटे सा श्रम करके भी वह
घर बाहर दोनों ही जगह
अपने लिये
सम्मान तलाशती ही रह जाती है |

शनिवार, 2 मई 2015

भाग्य भरोसे


30 April 2015
21:05

-इंदु बाला सिंह 

भाग्य 
है हथियार कायर का 
पकड़ कर वह उसे  
सोता है सदा  सेज पे 
हो  के निश्चिन्त 
क्योकि 
अब 
है न डर उसे 
जरा भी अपनी हार से |