गुरुवार, 7 नवंबर 2013

वर्तमान और स्वप्न

सपने देखने
और सपने जीने में बहुत फर्क है
सपने तो मृत्यु पर्यन्त हम देखते हैं
पर जी पाते हैं सदा हम
अपने वर्तमान में ही
हमारे हाथ से हमारा वर्तमान
धीरे से कब  बन जाता है हमारा भूत
हम जान  ही नहीं पाते
हम बस ठगे से उसे देखते रह जाते हैं
समय बस फिसलता रहता है
कितना भी कस कर क्यों न बांध लें  हम अपनी मुट्ठी |

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