सपने देखने
और सपने जीने
में बहुत फर्क है
सपने तो
मृत्यु पर्यन्त हम देखते हैं
पर
जी पाते हैं सदा हम
अपने वर्तमान
में ही
हमारे हाथ से
हमारा वर्तमान
धीरे से
कब बन जाता है हमारा भूत
हम जान ही नहीं पाते
हम बस ठगे से
उसे देखते रह जाते हैं
समय बस फिसलता
रहता है
कितना भी कस
कर क्यों न बांध लें हम अपनी मुट्ठी |
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