गांव शब्द याद दिलाता है
वह घर
जिसे हम बखरी
कहते थे
और जिसमें
अलगा तो हुआ था
पर आंगन के
बीच दीवार न उठी थी
जिसके एक तरफ
सास - ससुर , बेटा - बहू रहते थे
और दूसरी तरफ
दादा और सात वर्षीय पोती रहती थी
जिसके माता
पिता ने छोड़ दिया था गांव में बेटी को
दादा का
खाना बनाने के लिए
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फिर उस सात
वर्षीय पोती की
शाम का खाना
समय पर बना न पाने पर
दादा द्वारा
छाता से की गयी पिटाई याद आती है
मन में एक हूक
सी पैदा होती है
आखिर
देखनेवाले रिश्तेदारों ने
हाथ क्यों
नहीं पकड़ लिया था दादा का
क्यों पिट्ने
दिया था उस बालिका को
ये कैसे अपने
हैं !
ये कैसा बचपन
था ?
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