बुधवार, 13 नवंबर 2013

निरुत्तर है पुरुष

आरक्षण दिया जाय
पैतृक संपत्ति में हक दिया जाय
पर क्या लडकियों के विचार में
परिवर्तन ला सकते हैं हम
उसके मन में पारिवारिक जिम्मेवारी की भावना
पनपा सकते हैं हम कभी
यह एक सोचनीय विचार है
हर लड़की देखती है
घर में रहा जा सकता है सुरक्षित
पैसे कमाने की चिंता से मुक्त
ठाट से वह झकझोरती  है 
वह सामजिक व्यवस्था का दुहाई दे पति को .....
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खिला नहीं सकते थे तो ब्याह क्यों किया ?....
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पढ़ी लिखी महिलाएं के मुंह से  ऐसे वाक्य निकल कर
मारते हैं तमाचा
हमारा प्रगतिवादी सवर्ण पुरुष
सारे आरक्षणों को लाँघ ऊँचाई पर पहुंचने के बाद
रह जाता है निरुत्तर

एक पल को |

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