बेटी
पूरे गांव की होती थी
आज घर की ही
नहीं
अब तो घर छोटा
हो गया - मम्मी , डैडी और बच्चे
वो भी औलाद
केवल एक चाहिए
पहली बेटी हो
जाय तो दूसरी चाहिए
बेटा न हो तो
वंश कैसे चलेगा ?
घर के रिश्ते
खत्म हुए
मित्र अपने
बने
रिश्तों को ही
बेटी बोझ लगी
तो बेटी कैसे
सुरक्षित हो आज !
केवल क़ानून और
पुलिस करेगी सुरक्षा बेटी की ?
बड़े घर की
छोटी सरल बेटियां
निर्भर नौकरों
पर
धनी और गरीब
की श्रेणी में बंटा समाज
धनी को कोसता
सर्वहारा वर्ग
के लिए कमजोर
नस है धनी की बेटी
जो कि जब तब
दबा दी जाती है
बेटी को हम
कहाँ खो रहे हैं
आज बेटी स्वयं
एक सर्वहारा वर्ग है
जिसे हम पूजते
हैं एक दिन
नवमी के दिन
और गर्भ में
ही मार देते हैं बेटी को बाकी दिन
दोष माँ पर
थोप देते हैं ......
कैसी माँ थी !
सुरक्षा न कर
सकी अपनी बेटी की
ये कैसा पाठ
पढ़ा रहे हैं हम अपने पुत्र को ?