शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

कमजोर नस है बेटी

बेटी पूरे गांव की होती थी
आज घर की ही नहीं
अब तो घर छोटा हो गया - मम्मी , डैडी और बच्चे
वो भी औलाद केवल एक चाहिए
पहली बेटी हो जाय तो दूसरी चाहिए
बेटा न हो तो वंश कैसे चलेगा ?
घर के रिश्ते खत्म हुए
मित्र अपने बने
रिश्तों को ही बेटी बोझ लगी
तो बेटी कैसे सुरक्षित हो आज !
केवल क़ानून और पुलिस करेगी सुरक्षा बेटी की ?
बड़े घर की छोटी सरल बेटियां
निर्भर नौकरों पर
धनी और गरीब की श्रेणी में बंटा समाज
धनी को कोसता सर्वहारा वर्ग
के लिए कमजोर नस है  धनी की बेटी
जो कि जब तब दबा दी जाती है
बेटी को हम कहाँ खो रहे हैं
आज बेटी स्वयं एक सर्वहारा वर्ग है
जिसे हम पूजते हैं  एक दिन
नवमी के दिन
और गर्भ में ही मार देते हैं बेटी को बाकी दिन
दोष माँ पर थोप देते हैं ......
कैसी माँ थी !
सुरक्षा न कर सकी अपनी बेटी की
ये कैसा पाठ पढ़ा रहे हैं हम अपने पुत्र को ?





शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

वक्त की पाबंदी स्कूल में

यूनिफार्म में स्कुल का बैग लटकाए
लौटनेवाले बच्चे
पैदा करते हैं मन में निराशा
जाड़े की सुबह
सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक भी 
थोड़ा ज्यादा पाबन्द हो जाते हैं वक्त के
और सिखाने लगते हैं विद्यर्थियों को समय की महत्ता
अब ये बच्चे खलेंगे किसी पार्क में
या किसी खाली मैदान में
अपना बैग छुपा देंगे ये किसी पेड़ के पीछे
घंटों बतियाएंगे
और इधर उधर घूम कर लौट जायेंगे घर
ठीक विद्यालय की छुट्टी के समय पर
एक बार किसी ने देख लिया था
बच्चों को बालू के ढेर में बैग छुपाते
और छुप कर उसने बैग पहुंचा दिया था स्कूल में
बैग की डायरी देख
जम कर हंगामा हुआ था
समय पर स्कूल का गेट बंद कर
मीलों दूर से साईकिल चला कर स्कूल आने वाले बच्चों को
आखिर कौन सा पाठ पढ़ा रहा है स्कूल ?




लोक त्यौहार

लोक त्यौहार पल भर को भुला देतें हैं दुःख ....
त्यौहार आम  आदमी का सकून  है
भूल जाता है वह
विस्थापन
जीवन के दैनिक कष्ट
भविष्य के सपने
बस वह वर्तमान में जीने लगता है
बस इस वक्त  वह है  और उसकी जीवन दायिनी प्रकृति
कल की कल सोंचेगा वह |

नींव है लोक गीत

लोक गीत ईश्वर  का आह्वान हैं
तो शादी - ब्याह जन्मोत्सव का उल्लास भी है
यह मौन रुदन भी हैं
जो रिश्तों को आवाज लगता है
और सीधे प्रवेश करता है हृदय में हमारे
हम  कान बंद नहीं कर सकते
यह आवाज मधुर हो या करुण
घंटों भिंगोती  रहती है हमें  
मन खोजने  को आतुर हो  उठता है उस श्रोत को
ऐसा कोई नशा नहीं बना
 जो भुला दे  अपने घर की अपनी नींव को |

इज्जत पाती वो भी

पिता की मृत्यु के बाद
भाई को ' सर ' सम्बोधन मिलने लगा
सुख दुःख के कार्ड आने लगे
' सर ' के नाम
हर जगह ' सर ' सपरिवार  जाने लगे
बुलावा भी तो उन्ही के परिवार को  था
बहन को लोग भूल चले
अब वो लड़की थी
जो अपने पैतृक घर के एक कमरे में रहती थी
वह खुद कमाती थी
निर्भर न थी आर्थिक रूप से भाई पर
हर पल उसे भय था
किसी भी समय ' सर ' उससे घर खाली करवा सकते थे
सड़क पर उसे मनचलों का भय था
वह फब्तियों से भयभीत थी
बलात्कर से भयभीत थी
लड़की  थी न
कभी कभी सोंचती थी वो
ब्याह कर ली होती किसी के भाई से
या किसी के पिता से
तो शायद वो भी इज्जत पाती
सुरक्षित रहती |

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

भोर का भय

ब्याह कर आयी थी
सास का डर था
सबेरे सूर्योदय से पहले
सबके उठने से पहले सो कर उठना
और नहा धो कर रसोई में जाना रहता था
आज बहू का डर है
भोर भोर उठने में डर लगता है उसे
क्या भोर भोर उठ जाती हैं अम्मा
चैन से सोने भी नहीं देतीं |

बुधवार, 20 नवंबर 2013

बेटी का मान

पिता की मृत्यु के पश्चात
हकबका जाती है बेटी उस समय
जब उसे पिता की वसीयत दिखाई नहीं जाती
और कुछ मास बाद देखती  है वह
पिता की स्थाई सम्पत्ति का मालिक बन गया है
उसका अपना भाई
इससे बड़ा अपमान उसके लिए क्या है
पिता से उसे उसका हक न मिला
बची खुची कसर भी पूरी हो जाती है
जब वह देखती  है
उसके भाई की पत्नी को माँ के गहने पहने देख 
ममेरी बहन के ब्याह में
माता पिता ही अपने नहीं
तो जग बैरी बन जाय
प्रश्न धन का नहीं
पैतृक हक और मान का है
समझदार बेटियों की नन्ही पौध देख रही है
पिताओं के कर्मों को
महसूस कर रही है बहुत कुछ
और तख्ता पलट रही हैं ये बेटियां
अपने हक और मान की तलाश में निकल पड़ी हैं बेटियां
राखी का धागा कमजोर पड़ता जा रहा है |


औरत का मन

इर्द गिर्द देखती हूं
शिकायतें करती हैं महिलाएं
अपने पुरुष नजदीकी रिश्तेदारों से
और जगह बनाती हैं अपनी उनके दिल में
वह पुरुष अपना पुत्र ही क्यों न हो
वैसे दुनियां में दो जातियां है - मर्द और औरत
बाकी तो सब नकली हैं
मर्द को स्त्री बड़ा मानती है 
कितना आसान  होता है जीना
शिकायतें करते हुए
हंसते खिलखिलाते
बच्चे जन्मा कर उन्हें पालते
और खाना बनाते बनाते काट  लेना जीवन
घर की चाहरदीवारी में सुरक्षित
हर लड़की के सामने उसका आदर्श  हैं
अपने घर और अड़ोस - पड़ोस की सजी धजी बरामदे में बतियाती औरतें
आफिसों में तो जरुरतमन्द औरतें काम करती हैं
वरना अपना घर किसे बुरा लगता है
औरत का मन तो बंजर मैदान होता है
जो पुरुष उसे जीत ले
वह उस मैदान का अधिकारी होता है |

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

मेरा रहस्य

1971


मैं कौन हूँ
तुम नहीं पहचानते मुझे !
तुम्हारा ही तो प्रतिविम्ब हूँ मैं
आओ
झांको मेरी आँखों में
पहचानो
मेरी परतें उघाड़ो
नवीं रूप !
मेरी चीड - फाड़ करो
मुझे समझो !
.......................
............................
नहीं पहचाने !
मैं प्रकृति हूं
मैं कविता हूं
मैं नारी हूं
तुम अपने और मेरे बीच के धुंध को
चीर नहीं सकते क्या !

         

भिखारी जरूरी हैं

शहर में भिखारी के जत्थे
हर शनिवार को आते हैं
फिर दिखाई नहीं देते
हर गली के दो तीन घरों के सामने
चावल का बर्तन थामे एक महिला मिलती है
जो एक एक मुठ्ठी चावल बांटती है
हर भिखारी को
और मुक्त करती है अपने परिवार को
शनि के प्रकोप से
बड़े कीमती हैं ये भिखारी
हमें शनि के कोप से मुक्त करते हैं
सरकार को इनका विशेष ख्याल रखना चाहिए
कहीं इनकी जाति लुप्त न हो जाय |

नये झंडे का जन्म

 1971


पति ने पत्नी को पीटा
मेरा ही खा कर मुझसे जबान लड़ाती है
तेरी यह मजाल !
तड़ाक !...
................................
मालिक ने नौकर को आंख दिखाई .....
खबरदार !
इसके बारे में किसी के सामने मुंह खोला तो
तुझे चोरी के इल्जाम में
बंद करवा दूंगा
मेरा नमक खाता है
याद रखना !
........................................
नवयुवक
जिस दफ्तर में गया
उसे वही पुराना उत्तर मिला ........
नौकरी नहीं है !
..........................................
ठेकेदार ने
दस्तखत कराया मजदूर से
सौ की संख्या के आगे
पेमेंट के रजिस्टर  पर
हाथ में पकड़ाया
पचास रूपये !
............................................
दुखी परेशान जनों ने
स्थापना की है
एक संस्था की
इस संस्था के सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है |










रविवार, 17 नवंबर 2013

खेल

चेतना शरीर से निकल कर
जब देखती है
खेल बुद्धि और मन का
और संसार के  निस्सारता का
तब पत्थर बन जाता है तन और मन
थक जाता है रौंदनेवाला |

खाना समय पर क्यों न बना ?

गांव शब्द याद दिलाता है
वह घर
जिसे हम बखरी कहते थे
और जिसमें अलगा तो हुआ था
पर आंगन के बीच दीवार न उठी थी
जिसके एक तरफ सास - ससुर , बेटा - बहू रहते थे
और दूसरी तरफ दादा और सात वर्षीय पोती रहती थी
जिसके माता पिता ने छोड़ दिया था गांव में बेटी को
दादा का खाना  बनाने के लिए
..................................................
फिर उस सात वर्षीय पोती की
शाम का खाना समय पर बना न पाने पर
दादा द्वारा छाता से की गयी पिटाई याद आती है
मन में एक हूक सी पैदा होती है
आखिर देखनेवाले रिश्तेदारों ने
हाथ क्यों नहीं पकड़ लिया था दादा का
क्यों पिट्ने दिया था उस बालिका को
ये कैसे अपने हैं !
ये कैसा बचपन था ?

बुधवार, 13 नवंबर 2013

आजाद हैं लडकियां

परिवर्तन आया
खोल दी हथकड़ी उसने
लडकियों की
शोषित नहीं अब वे
धर्म के नाम पे
सहानुभूति के नाम पे
अब वे देवी नहीं इंसान हैं
जी रही हैं वे अकेली
सन्तान नहीं चाहिए
कौन सम्हालेगा
पति नहीं चाहिए
मैं ही क्यों घर सम्हालूं
भाई नही चाहिए
मैंने सहारा दिया बचपन में उसे
पैतृक सम्पत्ति उसे दिए
परिवर्तन ने अकेली बना दिया
ब्याहता को भी
माँ को भी
पति और पुत्र रहते हुए भी
आज अकेली है वह
तीज त्यौहार नहीं
शादी ब्याह नहीं
हित मित्र नहीं
पेन फ्रेंड और फेसबुक फ्रेंड में सांसें लेती हैं लडकियां
जरूरतमंदों की भीड़ से घिरी
खो दी लड़की ने रंगीनियां जीवन की
ये कैसी आजादी मिली उसे
हमने आज ये कैसी वसीयत दी अपनी बेटियों को ?









निरुत्तर है पुरुष

आरक्षण दिया जाय
पैतृक संपत्ति में हक दिया जाय
पर क्या लडकियों के विचार में
परिवर्तन ला सकते हैं हम
उसके मन में पारिवारिक जिम्मेवारी की भावना
पनपा सकते हैं हम कभी
यह एक सोचनीय विचार है
हर लड़की देखती है
घर में रहा जा सकता है सुरक्षित
पैसे कमाने की चिंता से मुक्त
ठाट से वह झकझोरती  है 
वह सामजिक व्यवस्था का दुहाई दे पति को .....
...............................................
खिला नहीं सकते थे तो ब्याह क्यों किया ?....
.............................................
पढ़ी लिखी महिलाएं के मुंह से  ऐसे वाक्य निकल कर
मारते हैं तमाचा
हमारा प्रगतिवादी सवर्ण पुरुष
सारे आरक्षणों को लाँघ ऊँचाई पर पहुंचने के बाद
रह जाता है निरुत्तर

एक पल को |

मिट्टी का दिया

मिट्टी का दीया हूं
मंदिर में  जलता
घर में जलता
स्वजन  की याद में जलता
जहां तेल बाती डाल कर जलाते मुझे तुम
वहीं मै जलता
राह दिखता
आशा का दीप प्रज्ज्वलित करता
सबका प्रिय हूं मै
पर मुझे  प्रिय है मेरा सर्जक
मेरा अपना कुम्हार
जिसका घर है आज दीवाली में भी अँधेरा
क्योंकि तुमने समय पर न लौटाये
उसके रूपये उधार |

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

वर्तमान और स्वप्न

सपने देखने
और सपने जीने में बहुत फर्क है
सपने तो मृत्यु पर्यन्त हम देखते हैं
पर जी पाते हैं सदा हम
अपने वर्तमान में ही
हमारे हाथ से हमारा वर्तमान
धीरे से कब  बन जाता है हमारा भूत
हम जान  ही नहीं पाते
हम बस ठगे से उसे देखते रह जाते हैं
समय बस फिसलता रहता है
कितना भी कस कर क्यों न बांध लें  हम अपनी मुट्ठी |

पुरुषार्थ तो करना होगा

आसान होता है जी लेना
हंस लेना रो लेना
मार खा लेना
दोष दे देना दैव को
लड़की के लिए
पर वह  कैसी जननी बन रही हैं !
कैसे नागरिक बना रहे हैं अपनी औलाद को पुरुष आज !
माता पिता की गुमी आवाज होती  है संतान
परिवर्तन तो लाना ही होगा
भाग्य की औलाद न बन के
अब  तो पुरुषार्थ करना  ही होगा
युवक व युवतियों को
नाकामियों व गरीबी की वसीयत को ठुकराना ही होगा
छल का जवाब कर्म से देना होगा |

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

मकान तो जरूरी है

मकान जरूरी है
ब्याह कैसे होगा लड़के का
..........................
कोई बात नहीं
हम अपनी लड़की के नाम से खरीद देंगे एक घर
............................................
सरकारी नौकरी में है लड़का
सरकारी क्वाटर  तो मिलेगा न
..................................................
तो क्या परिवार भी भटकेगा शहर शहर , गांव गांव
बच्चों की पढाई कैसे होगी
कितने समझदार हैं माता पिता
.......................................
लड़की आज सपना देखती है
अपना मकान बनाने का
आखिर कौन सा मकान उसका है ?
एक पति का है तो दूसरा पिता का
ब्याह कर लेगी तो तनख्वाह का हिसाब पति रखेगा
बच्चे कौन सम्हालेगा ?
...............................
इस मकान के झगड़े में घर खो गया
ननद भाभी , ससुर समधी , सास समधिन
चाचा मामा , चाची मामी .....सब गुम गये 
सब रिश्ते कहानी के पात्र बन गये
जब एक छोटे मकान में बसता था घर
चूल्हे अलग थे
पर साँझा था सुख दुःख तीज त्यौहार
.......................
हम प्रगति कर रहे हैं
मकान बना रहे हैं |


  



सोमवार, 4 नवंबर 2013

बोतल मैय्या

जेब में रुपैय्या
घर से दूर
काम का तनाव
सीनियर्स का मार्गदर्शन
इक्के दुक्के ढूंढने से मिलेंगे
जिसने शराब न छूई हो
युवतियां तो बच भी जाती हैं
सीनियर्स की पत्नियों से मित्रता कर
पर युवक पार्टी में अकेला बैठा कोल्डड्रिंक की चुस्की लेता हुआ
चावल में पड़ा कंकर सा दिखाई देने लगता है
मौके की तलाश रहती है
उसकी गलतियां खोजी जाती हैं
फिर शिकायतें ....
बिना प्रोमोशन के ट्रांसफर
सुदूर इलाके में पोस्टिंग
कितना मुश्किल होता है जीना
नौकरी करना सगों से दूर
बच के चलना
बोतल मैय्या के इंद्रजाल से |

रविवार, 3 नवंबर 2013

कर देंगे तेरा विसर्जन

प्यारी माँ !
माटी की मूरत माँ
लक्ष्मी स्वरूपा है तू
ओ मेरी माँ !
ऐसी ही खूबसूरत रहना तू
हर रिश्तों के चढ़ावों के हकदार हम पुत्र
इतना तो समझ ही गयी तू
तेरे सजीव बनते ही
कर देंगे हम तेरा विसर्जन माँ |