शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

उसे ' चीफ की दावत ' के इंजीनियर का इन्तजार था




- इंदु बाला सिंह


पुरनिया
अपने मर्द के बनाये मकान के
पिछले अटैच्ड बाथरूम वाले कमरे में सोती थी
जागती थी
और
अपने इतिहास में जीती थी ।
उसकी
आलमारी भरी थी
उसके
अपने मर्द द्वारा उसे उपहार में मिले
हर मौसम के कपड़ों से ।
वह
बैठना चाहती थी
अपने डाइनिंग रूम में
पर
वहां बैठते ही वह आहत हो जाती थी
किचन में काम करने वाली कामवालियों की अपनी भाषा में शुरू हो गई बातों से
और
डाइनिंग टेबल पर दबी जबान में बतियाते आये दिन टिके निखट्टू मेहमानों  के सपाट  चेहरों से |
वह
अपने ड्राइंग रूम के सोफे में बैठ अभिवादन स्वीकार करना चाहती थी घर में आनेवाले मेहमानों का
उनसे होनेवाली चर्चा में अपना मत प्रकट करना चाहती थी ...........
अपने घर के बरामदे में अपने मर्द की लम्बी कुर्सी पर बैठ अपने पैर पसार सड़क का नजारा देखना चाहती थी
पर
बेटे की तनी भृकुटि उसे रोक देती थी ।
 उसे असह्य था
अपने बेटे का तपाका
और
बहू की मुस्कुराहट ।
पुरनिया को
इन्तजार था अपने स्कूल में पढ़ी  कहानी के चरित्र
अपने
सपने  के ' चीफ की दावत ' के इंजीनियर का
जो कभी न कभी तो आनेवाला था
और
उसके द्वारा बनाई गयी
ड्राइंग रूम में टंगी पेंटिंग की प्रसंशा करनेवाला था । 

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