बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

माँ का मन


12 February 2015
08:36

-इंदु बाला सिंह


जब जब
मौसम बिगड़ता है .........
आंधी चलती है ........
बादल बरसते हैं.............
बिजली चमकती है ...........
आकाश गरजता है ...........
अपनी औलादों को अपने पंखों में
भींच लेना चाहता है
माँ का मन |
और माँ सब कुछ भूल जाती है
वह
यह भी भूल जाती है
कि
उसके पंख के रोंयें
अब टूट चुके हैं
उसके पंखों में अब पहले सी गर्माहट न रही
उसकी
औलादें अब बड़ी हो चुकीं हैं ...........
वह
खुद भी धीरे धीरे ठंडी हो रही है ..........
अजब सा
गजब सा
होता है
माँ का मन |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें