मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

किसने बोया महाभारत का बीज !


25 February 2015
11:50
-इंदु बाला सिंह


रिजर्वेशन के नाम पर
तुम दया के पात्र बन गये ...........
अकेले चलने लगे
सबके इर्ष्या के पात्र बन गये
तुम हमारे प्यारे थे
हमारा सहारा थे
हम तो मशीनों पर निर्भर हो गये ...........
और
तुम प्रगति के नाम पर हमसे दूर पड़ गये
ये कैसी रेखा खिंची
तुम्हारे और हमारे बीच 
जिसे पार करना तुम्हारे अहं को चोट पहुंचाया
और
हमें अस्पर्श्य बनाया
हमारा सवर्ण होना या पुरुष होना
तुम्हें न भाया
हम तो जहां के तहां खड़े रहे
लेकिन
महाभारत के बीज न जाने किसने बो दिया तुम्हारे जेहन में
साहित्य भर रहा है
तुम्हारे दर्द से
हम खामोश खड़े हैं
सागर सरीखे |


बुद्धि सो रही है


25 February 2015
09:30
-इंदु बाला सिंह

झूठ को झूठलाना भी इतना आसान नहीं है
जब तक सच एक कदम चलता है
तब तक झूठ बीस कदम चल लेता है
कितने झूठ का पर्दाफाश करोगे तुम
थका मन आज बड़ा परेशान है
और
बुद्धि सो रही है
सोना भी तो जरूरी है सेहत के लिये |

माँ पहाड़ चढ़ती है


23 February 2015
22:31

-इंदु बाला सिंह


लोग कहते हैं
पैसे की माँ पहाड़ चढ़ती है
पर
मैंने बच्चे की माँ को पहाड़ चढ़ते देखा ......
समय को दांतों तले उंगली दबाते देखा | 

स्मार्ट पति पत्नी


25 February 2015
07:40

-इंदु बाला सिंह

स्मार्ट फोन सरीखे पति पत्नी भी स्मार्ट हैं आज ................
दोनों अपने अपने पिता के घर अपनी छुट्टियां बिताते हैं
दोनों अपने घरवालों , मित्रों और शहर का ख्याल रखते हैं
दोनों श्रवणकुमार सरीखे सेवाभाव से भरे हैं
दोनों समझदार हैं
दोनों अपने पैतृक अधिकार के प्रति चौकस हैं
दोनों को भय है कि कहीं उनका सहोदर हजम न कर ले उनका हिस्सा
दोनों के पिता अभावग्रस्त होते !.....तो दोनों के पास समयाभाव होता |

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

मीठे सपने


24 February 2015
11:51

-इंदु बाला सिंह


आशा और सपने
ही है अपने
सुन ले
ओ मेरे राजदुलारे !
हारी न हिम्मत जिसने
वही राजा बने
नींद  में वो देखे
मीठे सपने |

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

प्रोपोज


23 February 2015
11:01
-इंदु बाला सिंह


एक दिन पांचवी  कक्षा के छात्र ने
प्रोपोज किया  
अपनी सहपाठिन को
तो उत्तर मिला ....
अपनी हाईट देखी है !
और तब से
छात्रगण उस नाटे छात्र का नाम ले के 
आपस में छेड़खानी कर रहे  है
आजकल
विद्यालय में ...
टीचर भी आजकल मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं ......
क्या जमाना आ गया है !
जरा इनकी उम्र तो देखो यार
हम तो
ऐसे न थे |

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

चाभी


12 January 2015
07:16
-इंदु बाला सिंह

कहते हैं
हर ताले की चाभी होती है
ताला तो दिख रहा
पर
चाभी किसीने छुपा दी .......
तो यारो !
बड़े परिश्रम से तलाश रही हूं
अपने किस्मत की चाभी |

मूल्यवान होते हैं अभावग्रस्त


12 February 2015
13:42
-इंदु बाला सिंह

अभावग्रस्त  लोग
बड़े किस्मतवाले होते हैं
उन्हें कोई बीमारी ही नहीं होती है
हल्की फुल्की सर्दी या थोड़ा बहुत बुखार  होता है
जो  ठीक हो जाता है
बस एक या दो क्रोसीन से
कौन कहता है 
वे दुःख भोगते हैं
वे तो
खुशी खुशी अपनी नौकरी
दे जाते हैं अपनी औलाद को
छोटे छोटे सपने लिये अभावग्रस्त लोग
पलट देते  हैं
पल भर में ही सत्ता
क्योंकि
वे तो जुड़े रहते हैं
एक दुसरे से
अपनों में
पेट की भूख से  |


समय भरोसे जीती बिटिया


13 February 2015
12:54
-इंदु बाला सिंह


न जाने क्यूं
कभी कभी ऐसा लगता है मुझे
कि
माँ को
बेटा जन्माने में
ज्यादा पीड़ा झेलनी पड़ती है
बेटी की अपेक्षा
तभी तो
अपनी बेटी के दुःख से  
जिस माँ का कलेजा न दहलता
उसी माँ का असीस बरसता
सदा अपने बेटे पर ........
ये कैसा रिश्ता होता माँ बेटी का ..........
माँ तो रंग बदलती
अपनी सम्पत्ति छुपा के रखती
अपने भरे पूरे बेटे के लिये
और 
अकेली
अभावग्रस्त बिटिया जीती
अपने सपने पालती
मुस्काती
चलती रहती
समय भरोसे
थाम के
अपनी आशा का हाथ |

एक ख्वाब इन्कलाब का


14 February 2015
07:18
-इंदु बाला सिंह


रस्सी तो अब बस टूटने को है
अकेले हो रहे हैं हम धीरे धीरे सुविधा के नाम पे
सास को बहु से आकांक्षा है ........
बहू को अपने माता पिता से अथाह प्यार है .......
मैं कोई सामान नहीं जिसे दान कर स्वर्ग में सीट सुरक्षित करा लो तुम ........
क़ानून झलक दिखलाता है
फिर
अव्यवस्था के बादल में छुप जाता है
माँ , बेटी , बहु रिश्ते कपूर सरीखे उड़ चुके हैं
हम कहां जा रहे हैं ..........
ये कैसा इन्कलाब आ रहा है ..............
न जाने क्यों
हम संस्कृति की जयकार करते हुये  इन्कलाब को गले लगा रहे हैं
छलावे इन्कलाब के सपनीले इन्द्रधनुष को अपनी पहचान बनाने को हम आतुर हैं
यूं लगता है ........
हम बस बहे जा रहे हैं
न जाने क्यों हम समय को मुट्ठी में बांधने की ताकत खोते जा रहे हैं |

आठ वर्षीय छात्र का मनोबल


20 February 2015
09:49
-इंदु बाला सिंह


टीचर पुलिस आयेगी
रात में
पार्क के अंदर चोर पकड़ने
तो
मुझे कर दीजियेगा मिसकाल
मैं बोलूंगा पुलिस से
हमारे पार्क में लाईट लगवायें
क्योंकि
हम बच्चे खेलना चाहते हैं इसी पार्क में  .............
और
मैं
इस आठ वर्षीय छात्र के मनोबल से 
अभिभूत हो गयी |

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

नसीबोंवाली की आहट


18 February 2015
11:40
-इंदु बाला सिंह


राजकुमार , जेवर , जरीदार साड़ियों की चाह लिये
घरेलू औरत बनी लड़की
मर्दों की चाल के तहत 
सर्वहारा बन
ठगी सी
अकेली ही रह जाती है ........
वैसे
कुछ नसीबोंवाली होती हैं
जो
कम उम्र में ही
अपने इर्दगिर्द के चक्रव्यूह से मुक्त हो जाती हैं ............
हम बस उन घरलू औरतों की आहट महसूसते हैं
अपने खाली पलों में .......
कब सुधरेंगे हम !
न जाने क्यों आज चिंतित है मन |

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

पलों के वृक्ष


07 February 2015
08:16
-इंदु बाला सिंह


चल पकड़ें
पलों को मुट्ठी में
और
लगा दें
हर पल के बीज अपने दिलों में ........
थके मन सुस्तायेंगे
इन्हीं पलों के वृक्ष तले
सपने देखेंगे
सपने ही तो अपने होते हैं
जिसके सहारे हम आजीवन चलते रहते हैं |

माँ का मन


12 February 2015
08:36

-इंदु बाला सिंह


जब जब
मौसम बिगड़ता है .........
आंधी चलती है ........
बादल बरसते हैं.............
बिजली चमकती है ...........
आकाश गरजता है ...........
अपनी औलादों को अपने पंखों में
भींच लेना चाहता है
माँ का मन |
और माँ सब कुछ भूल जाती है
वह
यह भी भूल जाती है
कि
उसके पंख के रोंयें
अब टूट चुके हैं
उसके पंखों में अब पहले सी गर्माहट न रही
उसकी
औलादें अब बड़ी हो चुकीं हैं ...........
वह
खुद भी धीरे धीरे ठंडी हो रही है ..........
अजब सा
गजब सा
होता है
माँ का मन |

कहानी अधूरी रह जाती है


11 February 2015
13:32
-इंदु बाला सिंह


बड़ा मन करता है चलूं
ढूढूं 
अपने बिछड़े रक्त-सम्बन्धों को
पर
मन के उछाल पर
डाल देती हूं 
पानी के छींटे ........
पासवाले कितना प्रिय हैं तुझे
कि
चाह है तुझमें दूरस्थ गुमे हुये रिश्तों की |
बस ताकते से रह जाते हैं पुराने गुमे हुये चेहरे
मुझे
स्थिर आँखों से
और
कहानी बस अधूरी ही रह जाती है |



मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

शायद तुम्हें भूल जायें हम


11 February 2015
07:19
-इंदु बाला सिंह


माना कि तुम्हारे जंग में
अहम भूमिका निभायी तुम्हारी पत्नी ने
रंग गये अखबार तुम्हारी पत्नी की खुशियों के रंग से
तुम्हारी सरल झेंपी सी पत्नी ने
किया तृप्त और गौरान्वित हर बेटी के पिता को
पर
तुम्हारे माता पिता का उजास चेहरा
गुम गया था कहीं भीड़ में
शायद
अखबार भी उन्हें भूल चुके थे ........
कुछ दिन बाद
शायद हम भी तुम्हें भूल जायें |


बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

सुख बांटने काबिल


04 February 2015
10:22
-इंदु बाला सिंह

गर अपने  हिस्से का सुख
बांटने काबिल न समझा मुझे 
तो आज क्यों आया तू
बांटने अपना दुःख .....
मैं न ढोऊं
तेरे दुःख की पोटली .....
कहा उसने और मुंह मोड़ ली थी वह
शायद
उसका मन रो रहा था
कहते हैं न
समय लौटता नहीं
पर
वह अनुशासित शिक्षक की तरह हमें सिखा जरूर जाता है
और
सही छात्र अपनी गलतियां दुहराता नहीं
आगे बढ़ चला था मैं
बहुत कुछ पाठ याद करते हुये |


मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

प्रेम


03 February 2015
18:41

-इंदु बाला सिंह 

प्रेम के दीये की ज्योत तो ईश्वरीय है 
छुपा के रखना इसे 
तू 
दिल में अपने
बचा के रखना इसे 

तू सदा ही
आंधियों से ......
बुझ जायेगा
जिस दिन यह दीया
उस दिन छा जायेगा
अंधियारा जग में ......
किसी का हाथ न सूझेगा तुझे |

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

भागलपुरी चादर


03 February 2015
08:44
हांय !
बाजार में भागलपुरी चादर नहीं मिल रही
गर्मी में कितनी अच्छी रहती है
ठंडी ठंडी सकून देनेवाली
मेरी बिटिया हंस पड़ी
बोली ......
अरे माँ !
आजकल तो उस चादर से लोग पगड़ी बनाने लगे हैं
परेशान क्यों हो
दूसरी चादर ओढ़ लेना |

प्रश्न पिताश्री से


03 February 2015
07:47
-इंदु बाला सिंह


यज्ञ कुण्ड में कूदती रहेंगी बेटियां
नष्ट होती रहेंगी मर्यादायें
ओ पिताश्री !
आखिर कब तक ?
आखिर कब बनाओगे
तुम
बेटियों को योद्धा
आखिर कब सिखाओगे उसे बाधा दौड़
आखिर कब बंद करोगे तुम कतरना उसके पर |

दूसरे की अमानत


02 February 2015
17:53

02 February 2015
09:02

-इंदु बाला सिंह 

पढ़ी लिखी महिला हो या काम वाली हो 
जब भी मिल के बैठती हैं 
तब रसभरी चर्चा होती है ........
बेटी तो अमानत है 
दुसरे की 
आज नहीं तो कल देंगे ही उसे 
जिसके लिये जन्मी है वह 
सुनती हूं तो लगता है 
कैसे सुधरेगी स्थिति लड़की की 
कब तक पैदा करती रहेगी महिला और पुरुष पोसता रहेगा दुसरे की अमानत 
उपहार के साथ देने की चाह संग जीयेगी महिला 
अपनी जन्मायी बेटी को 
किसी दुसरे को |




आज का अभिमन्यु


31 January 2015
13:45
-इंदु बाला सिंह


विस्मित आंखें देख रहीं थीं
आज फिर से
एक  अभिमन्यु का युद्ध ........
यह एक अनोखा अभिमन्यु था
जो उतरा था समर क्षेत्र में
सीख समय से चक्रव्यूह भेदन कला ........
दर्शकों की सांसें रुक सी गयीं थी
विचार अटकलें लगा रहे थे
राज्य में
हर रोज सुबह शाम
पान की दुकान में भीड़ जमती थी
चाय की दूकान की बिक्री बढ़ गयी थी
आफिस की कैंटीन भरी रहती थी |
सब को आतुरता से इन्तजार था
फैसले के दिन का |