25
February 2015
11:50
-इंदु बाला
सिंह
रिजर्वेशन के
नाम पर
तुम
दया के पात्र बन गये ...........
अकेले चलने
लगे
सबके इर्ष्या
के पात्र बन गये
तुम हमारे
प्यारे थे
हमारा सहारा
थे
हम
तो मशीनों पर निर्भर हो गये ...........
और
तुम प्रगति
के नाम पर हमसे दूर पड़ गये
ये कैसी रेखा
खिंची
तुम्हारे और
हमारे बीच
जिसे पार
करना तुम्हारे अहं को चोट पहुंचाया
और
हमें
अस्पर्श्य बनाया
हमारा सवर्ण
होना या पुरुष होना
तुम्हें न
भाया
हम तो जहां
के तहां खड़े रहे
लेकिन
महाभारत के
बीज न जाने किसने बो दिया तुम्हारे जेहन में
साहित्य भर
रहा है
तुम्हारे
दर्द से
हम खामोश खड़े
हैं
सागर
सरीखे |